मीट मसाला
( पनीर मसाला, शाही पनीर मसाला, राजमा मसाला) भारत में मांसाहार का प्रयोग प्राचीनकाल से होता आ रहा हैं। अनेक प्राचीन ग्रन्थों में मांसाहार के प्रयोग का वर्णन मिलता हैं। हमारा मीट मसाला पनीर, शाही पनीर , राजमा या अन्य रसेदार सब्जियों में भी प्रयुक्त होता हैं। सब्जी बनाने की विधि के अनुसार ही मीट या पनीर आदि की भी सब्जी भी बनती हैं। यहाँ सब्जी मसाला के स्थान पर मीट मसाला प्रयुक्त होगा। घटक: हमारे मीट मसाले में हल्दी , धनियां ,मिर्चा ,जीरा ,बड़ी इलायची ,काली मिर्च ,लौंग, श्यामा जीरा,तज, छोटी इलायची , जायफल ,जावित्री, कोकिला, सौंठ ,पीपर आदि होते हैं। इन मसालों के गुण एवं विभिन्न प्रकार के उपयोग, उत्पत्ति स्थान ,वैज्ञानिक नाम ,रासायनिक संगठन आदि का वर्णन हमारे साबुत मसाले प्रकरण में किया गया हैं।
सब्जी मसाला
भारतीय भोजन प्रायःशाकाहारी होता हैं। जिसमें सब्जी का विषेष महत्व हैं। सब्जी प्रायः दो प्रकार की बनती हैं। प्रथम कन्द वाली सब्जी और द्वितीय हरी पत्तेदार सब्जी । कन्द वाली सब्जियों में आलू ,घुंइया ,बंडा,जिमीकन्द आदि आते हैं। यह सब्जी केवल प्याज ,लहसुन , जीरा और मिर्चे के साथ छोंककर सादी भी बनायी जाती हैं और मसालेदार भी बनती हैं। कन्द वाली सब्जी के साथ मटर ,गोभी ,बैंगन ,टमाटर ,सेम ,परवल आदि मिलाकर भी स्वादिष्ट सब्जी बनायी जाती हैं। हरे पत्तेदार सब्जियों में पालक ,सोयामेथी ,बथुआ ,चौरायी आदि आतें हैं। यह सब्जी अकेले भी बनती हैं और आलू के साथ भी मिलाकर भी बनती हैं। परन्तु यह सब्जी मसालेदार न होकर सादी ही अच्छी लगती हैं। हरे पत्तेदार सब्जियों में कन्द वाली सब्जियों की तुलना में पोषक तत्व अधिक होते हैं। इसके अतिरिक्त लौकी,तरोई, भिन्डी आदि की भी सब्जियाँ बनती हैं। यह भी हरी सब्जियों की कोटि में आते हैं…
भोजन बनाने सम्बंधी-नियम
भोजन स्वादिष्ट बनाने के लिए यह आवश्यक है कि भोजन बनाने वाले का मन भोजन बनाने मे लगना चाहिए, तभी भोजन स्वादिष्ट बनता है। कोई भी खाद्य पदार्थ बनाने या भोजन परोसने से पहले साफ पानी से दोनो हाथ भली-भाँति धुल कर, साफ कपड़ से पोछ लेना चाहिए। एंव भोजन बनाने मे सदैव ताजे एंव स्वच्छ पानी का प्रयोग करना चाहिए। खुले रखे हुए पानी का प्रयोग नही करना चाहिए। दाल आदि बनाने से पहले उसे जल से भलीभाति धुलकर लगभग आंधे घंटे पहले पानी मे भिगोकर रख देना चाहिए। तत्पश्चात उसी जल म दाल आदि बनाना चाहिए। इससे ईधन एंव समय की बचत होती है। किसी भी अनाज या सब्जी आदि को उबालने के बाद उसके बचे हुए पानी को कभी नही फेकना चाहिए। उस पानी को आटा गूथने में प्रयोग करना चाहिए। याद रखिए भोजन के पोषक तत्व इसी पानी में रहते है। इन्ही तत्वो से भोजन स्वादिष्ट…
संतुलित आहार और उसकी आवश्यकता
शरीर को स्वस्थ रखने के लिए प्रोटीन, कॉर्बोहाइड्रेट, वसा ,खनिज पदार्थ और जल की आवश्यकता होती है। इन तत्वों के संतुलित सेवन से शरीर स्वस्थ बना रहता है। यह ध्यान रखना चाहिये कि एक तत्व की कमी कभी भी कोई दूसरा तत्व पूर्ण नहीं कर सकता हैं। इसलिए इन तत्वों का सदैव संतुलित रूप से सेवन करना चाहिए। इनका महत्व और प्राप्ति खाद्य निम्नलिखित हैं। प्रोटीन (Protien) – यह शरीर की कोशिकाओं एवं उतकों (cells & tissues) के निर्माण और उसके टूट फूट को ठीक करने वाला मुख्य तत्व हैं। कैलोरीज की कमी होने पर यह उसे भी पूरा करता हैं। शरीर के उचित विकास के लिए यह बहुत आवश्यक है। इसलिए यह बच्चों और किशोरो के लिए यह बहुत जरूरी है। यह बढ़ती हुई आयु में मास बनाते हैं, और आयु भर शरीर को स्वस्थ रखतें हैं। प्रोटीन हमें समस्त प्रकार के द्विदल अन्न जैसे विभिन्न प्रकार की दालें,…
भोजन
शरीर को स्वस्थ अथवा अस्वस्थ रखने में भोजन का महत्वपूर्ण योगदान है। इसीलिये कहा गया है कि भोजन अमृत भी है और विष भी है। यह सदैव ध्यान में रखना चाहिये कि भोजन हमारे लिये है, न कि हम भोजन के लिये। यदि शरीर में कोई रोग है तो वह मात्र उपवास और भोजन सुधार से ही ठीक हो जाते हैं। वहीं स्वस्थ व्यक्ति भोजन में अनियमितता प्रारम्भ कर दे तो शरीर रुग्ण हो जाता है। इससे सिद्ध होता है कि भोचजन अमृत भी है और विष भी।एक बार खाद्यान्न संकट पर पं0 जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि हमारे देश में जितने मनुष्य भूखे मरते हैं उससे कहीं अधिक, अधिक भोजन करने से मरते हैं। प्रायः देखा जाता है कि लोग स्वाद के लिये मिर्च, मसालेदार भोजन करते हैं, जो हमारे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। वास्तव में सादे भोजन का एक अलग ही स्वाद होता है…
ध्यान
सभी प्रकार के लौकिक एवं पारलौकिक सुख प्राप्त करने के लिए ध्यान एक प्रमुख साधन है। गीता में भगवान ने नौ प्रकार की भक्ति बतलायी है जिसमें ध्यान भी एक भक्ति है। चाहे हम मंत्र जाप कर रहे हों, सत्संग सुन रहें या भगवान का कीर्तन कर रहें हों और मन कहीं और है तो हमें उसका लाभ नहीं मिलेगा। मन भटकने का अर्थ है ध्यान न लगना। इसलिये सत्संग, कीर्तन, सेवा कार्य या किसी भी प्रकार के कार्य में ध्यान लगना आवश्यक है। संसार के जितने भी अविष्यकार हुये हैं वे सब ध्यान के माध्यम से ही हुये हैं। इससे सिद्ध होता है कि ध्यान ही उन्नति का मूल है। इसलिये हमें ध्यान अवश्य करना चाहिये, वैसे तो ध्यान हम कभी भी कर सकते हैं परन्तु प्रातःकाल का समय सर्वोत्तम होता है। ध्यान लगाने के लिये स्नानादि क्रिया से निवृत्त होकर चित्रानुसार बैठ जायें। संभव हो तो पद्यमासान या…
स्नान
व्यायाम आदि से निवृत होकर सर्वप्रथम स्नान करना चाहिए। हमें प्रतिदिन स्नान करना चाहिए। किसी विद्वान ने कहा- ‘‘शतं विहाय भोक्तच्यं सहस्त्रं स्नानमाचरेत्।लक्षंविहाय दातव्यं कोटि व्यक्त्वा प्रभुं भजेत्।।‘‘ अर्थात सौ काम छोड़कर भोजन करे और हजार काम छोड़कर स्नान करे। लाख काम छोड़कर दान करे और करोड़ काम छोड़कर प्रभु का भजन करे। इसलिए प्रतिदिन स्नान अवश्य करना चाहिए। नहाने के लिए हैण्डपम्प, कुंआ अथवा ट्यूबबेल का पानी उत्तम होता है। क्योंकि ये पानी मौसम के अनुसार अपना तापक्रम बनाये रखते है। और शरीर में रक्त संचालन संतुलित रखते है। स्काटलैण्ड की 140 वर्षीय मरियम नाम की महिला प्रतिदिन प्रातः ठण्डे पानी से स्नान करती थी और इसके बाद वह चार मील बिना रुके टहलने को जाती थी। इस कारण वह इतनी अधिक उम्र में भी कभी बीमार नहीं पडी और दीर्घ जीवन प्राप्त किया। इसलिए शरीर को स्वच्छ, पवित्र और निरोग रखने के लिए प्रतिदिन स्नान करना परम आवश्यक…
शरीर की स्वच्छता के मार्ग
शरीर को स्वच्छ एवं स्वस्थ रखने के लिए ईश्वर ने चार मार्ग बनाये है। ये फेफड़े, वृक्क (गुर्दा), त्वचा एवं आंत है।प्रत्येक अंग विशेष ढ़ग से अपना कार्य करते है। शरीर के ये अंग मल विर्सजन का कार्य करते है। फेफडे़ शरीर का दूषित वायु बहार फेकते है और शुद्ध वायु ग्रहण करते है,जबकि वृक्क मूत्र रुप में शरीर के दूषित पदार्थ उत्सर्जित करते है। त्वचा पसीने के रुप में और बड़ी आंते मल के रुप में शरीर केे विजातीय द्रव्य का विसर्जन करते है। कुछ अवस्थाओं में ये स्वच्छता के मार्ग एक दूसरेेे पर अवलंबित रहते है। जैसे त्वचा और वृक्क। हम देखते है कि जाड़े की तुलना में गर्मी के दिनों में पेशाब कम होता है। क्योंकि शरीर के दूषित जल का कुछ अंश पसीने के रुप में बाहर निकल जाता है, वहीं जाडे़ में पसीना न निकलने के कारण वृक्कों को मूत्र मार्ग का सहारा लेना पड़ता…