Mathari

भारत और उसके आसपास के देशों में लोग नाश्ते के साथ मठरी, नमकीन आदि खाते हैं।चाय के साथ इसका खाने का आनंद कुछ और ही होता है। इसे बनाने के लिए मैदे में बेकिंग पाउडर, नमक, अजवाइन, कसूरी मेथी, मोयन (घी)मिलाकर खूब कडा सानते हैं।तत्पश्चात उसे गोल गोल चपटा बेलकर धीमी आंच पर तलते हैं और हल्का लाल होने पर निकाल लेते हैं। इस प्रकार मठरी तैयार होती है। इसे ठंडा होने पर किसी एयर टाइट डिब्बे में पैक कर रख लीजिए और चाय के साथ खा कर मजे लीजिए।समूह द्वारा इसी प्रकार मठरी तैयार की जाती है।

यह मिष्ठान वर्ग में आता है।भारत और उसके पड़ोसी देशों में यह बड़े चाव से खाया जाता है। इसे शकरपारा भी कहते हैं।यह गेहूं के आटे या मैदे से बनता है।इसे बनाने के लिए आटे में बेकिंग पाउडर और मोयन मिलाकर पानी से खूब कड़ा साना जाता है।इसके पश्चात इसके छोटे-छोटे चौकोर टुकड़े करके घी में तला जाता है।इसके ऊपर चीनी की चाशनी चढ़ा दी जाती है और मीठा खुरमा तैयार हो जाता है। यह भी बहुत स्वादिष्ट होता है। समूह द्वारा मीठा खुरमा बनाया जाता है।

भारतीय व्यंजनों में गुझिया का प्रमुख स्थान है। हिंदुओं में वसंत ऋतु में होली एक त्यौहार आता है, जिसमें गुझिया घर -घर विशेष रूप से बनती है।कहीं-कहीं यह नागपंचमी और दीपावली के त्यौहार पर भी बनती है। पहले समूह द्वारा केवल मसालों का ही संसाधन होता था। परंतु धीरे-धीरे उपभोक्ताओं द्वारा अन्य खाद्य सामग्रियों की मांग होती गई, जिसमें गुझिया भी एक है। यह भारत में अलग-अलग स्थानों पर विभिन्न नामों से पुकारी जाती है।यह बहुत स्वादिष्ट होती है। गुझिया वास्तव में आटे या मैदे की लोई में खोया,मेवा और शक्कर भरकर घी में तलकर तैयार की जाती है।कुछ स्थानों पर इसमें खोए के साथ चने का सत्तू और चावल का आटा भी मिलाया जाता हैं,जिसे खरपुड़ी कहते हैं।कुछ लोग भरावन में बेसन की महीन बूंदी (शक्कर की चासनी में भीगी हुई)भरकर बनाते हैं।यह भी बहुत स्वादिष्ट होती है। उपर्युक्त सभी प्रकार की गोझियों को सूखी गुझिया कहते हैं। कहीं-कहीं…

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विश्व की जनसंख्या का लगभग एक तिहाई भाग चावल खाकर ही जीता है। भारत में चावल खाने वाले सर्वाधिक हैं। चावल धान से निकलते हैं। प्राचीन काल में केरल में 9 प्रकार के धान पैदा होते थे। कहते हैं कि दुनिया में 3000 प्रकार के धान की कृषि होती है। चावलो में बासमती, काला नमक और कनकजीर आदि भारत के विख्यात चावल है। आयुर्वेद के मतानुसार यह शीतवीर्य, लघुपाक , स्निग्ध, रुचि, बल, कफ, शुक्र और पुष्टि बढ़ाने वाला होता है।] चावल स्वर साफ करने वाला, पित्तनाशक किंतु किंचित वायुवर्धक भी है। लेकिन यह सब गुण ढेकी या हाथ से कुटे चावल में ही होता है, मिल के चावल में नहीं। समूह द्वारा साबुत और सांफ चावल का आटा पिसाया जाता है । जिसके कई प्रकार के खाद्य पदार्थ बनते हैं, जैसे फरा, पापड़ कचरी, पूरीआदि।

चावल का पापड़ और कचरी भी लोगों को खूब मन भाता है।यह अनेक प्रकार से बनता है।समूह द्वारा भी चावल का पापड़ और कचरी बनाया जाता है। इसे बनाने के लिए चावल के आटे में हल्का सा बेकिंग पाउडर और अपने स्वाद के अनुसार नमक मिला लेते हैं। कुछ लोग इसमें जीरा या अजवाइन भी मिलाते हैं। तत्पश्चात चावल के आटे का तीन गुना पानी लेकर भगोने में उबालते हैं। जब पानी भली भांति उबलने लगे, तब पानी में चावल का आटा थोड़ा-थोड़ा करके मिलाते हैं और उसे चलाते जाते हैं। इसे चलाने में बहुत मेहनत लगती है, क्योंकि चावल का आटा पकने पर बहुत लसम पकड़ लेता है। इसे चलाते समय एक आदमी बर्तन को पकड़ता है और दूसरा चलाता है। लगभग आधा घंटा चलाने के बाद इसे ढक कर रख देते हैं और ठंडा होने पर इसे मसल कर छोटी-छोटी गोलियां बना कर पापड़ बेलने की मशीन में…

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मूंग का पापड़ बहुत स्वादिष्ट होता है। वास्तव में केवल मूंग की दाल का पापड़ नहीं बनता है। क्योंकि मूंग की दाल बहुत खुश्क होती है और शुद्ध मूंग का पापड़ बनाने पर वह फट जाता है। इसलिए मूंग की दाल में लसम लाने के लिए उसमें थोड़ा उर्द की धोई का आटा मिलाकर साना जाता है।पापड़ बनाने में बहुत मेहनत लगती है। इसीलिए किसी कठिन एवं दुष्कर कार्य को करने के लिए कहावत कही गई है कि,” बहुत पापड़ बेलना पड़ता है” इसी कहावत से सिद्ध होता है कि पापड़ बनाना एक कठिन कार्य है। मूंग या उर्द का पापड़ बनाने के लिए पहले आटे में नमक आदि सारी सामग्री मिलाकरआटे को बहुत ही कम पानी में जाता है।पानी आटे में चारों ओर बराबर से मिल जाए इसलिए इसकी लोहे या लकड़ी के मुसल से खूब कुटाई और खिंचाई होती है। तत्पश्चात इसे पापड़ बेलने वाले बेलन (मूंग उड़द…

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करेला एक सर्व सुलभ वनस्पति है।इसकी सब्जी, अचार आदि बनते हैं।साथ ही कई प्रकार की औषधियों में भी यह बहुत उपयोगी है। यह Cucurbitaceae परिवार का पौधा है। करेले को संस्कृत में कारवल्ली और आंग्ल भाषा मेंBitter Gourd कहते हैं। आयुर्वेद के मतानुसार करेला अग्निवर्धक, मलभेदक, ऊँषणवीर्य, ​​अरुचि और शुक्रनाशक है। कफ, पित्त, वायु, कामला,कृमि और रक्तदोष नाशक है। मधुमेह मेंँ करेला लाभकारी होने के कारण, मधुमेह के रोगी इसका अचार अधिक पसंद करते हैं। समूह द्वारा दो प्रकार से करेले का अचार तैयार किया जाता है। प्रथम प्रकार में करेले के छोटे-छोटे टुकड़े करके अचार बनता है और दूसरा कलौंजी के समान भरवा अचार बनता है। इसमें करेले को बीच से चीर कर उसके भीतर का गूदा निकालकर उसमें नमक लगाकर पानी छोड़ने के लिए दो दिन रखा जाता है। दो दिन बाद वह धूप में खूब सुखाया जाता है। सूखने के बाद उसके भीतर आम का लच्छा भरा…

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कटहल Moraceae वर्ग का वृक्ष है। संस्कृत में इसे पनसम, हिंदी में फरस और अंग्रेजी में Jack Fruit कहते हैं। आयुर्वेद के मतानुसार कटहल रुचि, बल, कफ और मेंद को बढ़ाने वाला,गुरुपाक और दाहजनक है। इसका कई औषधीय और खाद्य पदार्थों में प्रयोग होता है। समूह द्वारा कटहल का अचार बनाने के लिए पहले कटहल को छीलकर उसके गूदे को पानी में उबालकर धूप में सुखाया जाता है। तत्पश्चात उसमें मसाला,अमचूर और नमक आदि मिलाकर तेल डाल कर कई दिनों तक धूप में पकाया जाता है। हमारे किसी भी अचार में सोडियम बेंजोएट,सल्फर डाइऑक्साइड या बेंजोइक एसिड जैसे रासायनिक परिरक्षको (Preservative) का प्रयोग नहीं होता है। केवल नमक,मसाले और सरसों के तेल जैसे प्राकृतिक परिरक्षकों का ही प्रयोग होता है। सामग्री- कटहल, अचार मसाला, हल्दी, मिर्ची, नमक, अमचूर और सरसों का तेल आदि।

मंगरैल का उपयोग सदियों पूर्व से एशियाई और अफ्रीकी देशों में होता आया है।आयुर्वेद और प्राचीन ईसाई ग्रंथों में इसका वर्णन प्राप्त होता है। यह भूमध्य सागर के पूर्वी तटीय देशों, अफ्रीका , पश्चिमी एशिया और भारत में पैदा होता है। यह झाड़ी रूप में होता है। मंगरेल त्रिकोण आकार का काला रंग का छोटा बीज होता है जो एक गोलाकार आवरण में संग्रहित रहता है। मंगरैल आकार और रंग में प्याज के बीज और काले तिल के समान होते हैं।परंतु यह तीनों अलग-अलग प्रकार की वनस्पतियां हैं।मंगरेल को कलोंजी भी कहते हैं। यह रमुनकुलेशी कुल का पौधा है जिसक वानस्पतिक नाम मि जला सेदाइया है। गुणधर्म और उपयोग- आयुर्वेद के मतानुसार मंगरैल स्वाद में कसैला और चिकना है। इस में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, पोटेशियम, सोडियम, आयरन और जिंक आदि अनेक तत्व मिलते हैं। यह स्मरणशक्तिवर्धक, दुग्धवर्धक, मूूत्रवर्धक,सिरदर्द, नेत्र रोग, चर्मरोग और बालों के लिए लाभकारी है।इस्लाम मतानुयायी इसे मौत…

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यह विश्व के अनेक देशों के जंगलों में प्राकृतिक रूप से स्वयंभू वनस्पति है।इसकी कृषि नहीं होती है।वास्तव में यह एक प्रकार की काई है। इसे Black Stone Flower या पत्थर फूल भी कहते हैं।भारत में सदियों से यह खाद्य पदार्थों में एवं औषधियों में सेवन किया जाता है।इसे सब्जी या मीट में मसाले के साथ छोका जाता है। छड़ीले को कुछ लोग पाउडर के रूप में प्रयोग करते हैं, तो कुछ लोग इसे कैची से बारीक काटकर साबुत प्रयोग करते हैं।बारीक कटा जब दांत के नीचे पड़ता है,तब यह बहुत स्वादिष्ट लगता है। दक्षिण भारत में इसका प्रयोग अधिक होता है। आयुर्वेद के मतानुसार छड़ीला गरम, बाल एवं त्वचा के लिए लाभकारी है। यह यकृत, गुर्दा, अल्सर एवं डिप्रेशन में भी लाभप्रद है। यह दर्द विनाशक का भी कार्य करता है।परंतु गर्भावस्था के दौरान इसका सेवन नहीं करना चाहिए।हमारे समूह द्वारा छरीला का फूल साबुत विक्रय होता है।इसके अतिरिक्त…

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