भारत मे बड़ी इलायची का प्रयोग हजारो वर्षो से होता आ रहा है। बड़ी इलायची नेपाल, भूटान, सिक्किम, आसाम और बंगाल के दलदली एवं बड़े वृक्षो की छाया दार स्थान पर पैदा होती है। इसके बीज से कपूर जैसी सुगंध आती है। यह जिंजीबेरेसी परिवार के कुछ पौधे के सूखे संपुटिका फलो का नाम है। जिसका वानस्पतिक नाम अफ्रामोमम और अमोमम है। वर्ग भेद के अनुसार इसके अनेक वानस्पतिक नाम है। जैसे भारत में बड़ी इलायची का नाम अमोमम सबुलेटम रॉक्सबर्ग है। विभिन्न नाम – संस्कृतः बृहादेला, बंगला, पंजाबी और हिन्दीः में बड़ी इलायची, मलयालमः मेंपेरेलम तेलुगूः पेड्डमेलकी कहते है। गुणधर्म – एंव उपयोग – यह ऊष्णवीर्य, अग्निवर्धक, शुधावर्धक, पाचक एंव कफपित्तनाशक है। वह रक्तपित्त, चर्मरोग, श्वांस खांसी, प्यास, वमन, विषदोष, शिरोरोग एव दन्तरोग में लाभकारी है। यह हृदय एवं यकृत के लिए हितकारी है। Antioxident गुणो से युक्त होने के कारण यह कैसंर रोधी है। इसमे विटामिन सी, काबोहाइडे्ट,…

Read more

जीरा मूलरूप से मिश्र, सीरिया, तुर्किस्तान एवं उससे लगे भू भाग का पौधा है। इसका पौधा छोटा होता है। इसके फल सुगंधित होते है जिन्हे बीज कहते है। यही जीरा कहलाता है। एशियाई देशो में जीरा बहुतायत से भोजन आदि में प्रयुक्त होता है। जीरा बहुत पुराना मसाला है। यह बाईबिल काल से प्रयुक्त होता आ रहा है। आजकल इसकी व्यवसायिक खेती ईरान, भारत, मोरक्को, चीन, दक्षिणी रूस, इण्डोनेशिया, जापान आदि देशो में की जाती है। ईरान जीरे का मुख्य निर्यातक देश है।इसका वानस्पतिक नाम क्यूमीनियम साईमिनमलिन है और यह अबेलीफेरी परिवार का सदस्य है।विभिन्न नाम- संस्कृतः जीरक, जीरा। हिन्दी, बंगला, पंजाबीःें जीरा या सफेद जीरा। कशमीरी: ज्यूर, गुजरातीः जीरू या जिल। तेलुगू: जीकक कहते है। गुणधर्म एंव उपयोग – जीरा ऊर्ष्णवीर्य , उत्तेजक, अग्निवर्धक, क्षुधावर्धक, पाचक, सुगंधित, अरूचिनाशक, अजीर्णनाशक, अमाशय एवं गर्भाशय शोधक, त्रिदोषनाशक, स्तभंक, विषनाशक रक्तपित्त एवं कृमिरोग में लाभकारी है। जीरा रक्ताल्पता, अनिद्रा, थायराईड, निम्नरक्तचाप, मधुमेह, पेटदर्द…

Read more

सेंधा नमक पाकिस्तान के लाहौर नामक स्थान में स्थित एक पहाड़ी से प्राप्त होता हैं। यह ईरान में भी पाया जाता है। परंतु लाहौर का सेंधानमक ईरान के नमक की तुलना मे श्रेष्ठ होता है। यह हल्के लाल रंग की लालिमा लिए हुए होता है। जबकि ईरान का नमक पूर्णता सफेद होता है।समस्त लवणों में सैधवलवण ही प्रशस्त हैं। यह व्रत में खाया जाता हैं एवं आयुर्वेद की अनेक प्रकार औषधियों में प्रयुक्त होता हैं। स्वास्थ रक्षा के लिए एक सीमित मात्रा में नमक की नितान्त आवश्यकता होती हैं। क्योंकि नमक में कैल्शियम, फास्फोरस, पोटैशियम, मैग्नीशियम,क्लोरीन, सोडियम, सल्फर, आयरन, कॉपर, फ्लोरीन, सिलिकॉन, आयोडीन आदि धातुएँ पायी जाती हैं। कहा जाता है यदि कोई व्यक्ति एक वर्ष तक निरंतर किसी भी प्रकार का नमक नहीं खाता है तो उसका रक्त इतना शुद्ध हो जाता है कि यदि सांप भी उसे काट ले तो उस पर कोई असर नहीं होता। सच्चाई क्या…

Read more

यह सांभर नमक, सुहागा, आँवला और पियाँवासा के पत्तों के मिश्रण से बनाया जाता हैं। आर्युवेद के मतानुसार काला नमक पाचक, हृदय उत्तेजक, दस्तावर,वायु एवं कृमिनाशक हैं। यह उदरशूल एवं हृदय सम्बन्धी रोगो में लाभकारी हैं। यह हींगाष्टक चूर्ण का महत्त्वपूर्ण घटक हैं एवं आयुर्वेदीय औषधियों में बहुधा प्रयुक्त होता हैं। वायु प्रधान रोगाों में इसे गर्म जल के साथ एवं पित्तप्रधान रोगों में इसे देशी घी के साथ देते हैं। उदर रोगों में यह घृतकुमारी , अजवाइन या हींग के साथ दिया जाता हैं। काला नमक का प्रयोग रक्तविकार, सूजन, जलोदर,हृदय या यकृतजन्य शोथ में नहीं करना चाहिए। हमारे समूह द्वारा कालानमक का पथरीला भाग निकालकर , धुलकर , सुखाकर पिसाया जाता हैं। इसके पाउडर का विक्रय होता है। इसके अतिरिक्त यह हमारे रायता मसाला , चाट मसाला , जलजीरा और पानीपूरी मसाला एवं कुछ अचारों में भी प्रयुक्त होता हैं।

अचार मसाला कलौंजी मसाला के समान ही होता हैं। कलौंजी मसाले की तुलना में यह कुछ मोटा पिसा रहता है। साथ ही इसमें पीली सरसों और अजवाइन भी मिला रहता हैं। कुछ लोग कलौंजी मसाले के स्थान पर भरावन के लिए अचार मसाले का प्रयोग करते हैं।अन्य अचार मसालों में पचफोङन आदि मसाले के साथ नमक, हल्दी और अमचुर आदि का मिश्रण भी रहता हैं। इस कारण से यह सस्ता भी रहता है।परन्तु हमारे आचार मसाले में इन सबका मिश्रण नहीं रहता हैं। क्योंकि जो सब्जी या फल खट्टे होते हैं , जैसे आम, अंबार, कमरख आदि। उनमें अमचुर की आवश्यकता नहीं पड़ती हैं। दूसरी बात किसी भी सब्जी या फल का अचार बनाने से पहले उसमें नमक मिलाकर उसका पानी निकाला जाता हैं। ताकि वह खराब न होने पाये। यदि हम अन्य अचार मसाला सब्जी या फल में मिलाते हैं तो पानी भली-भांति नहीं निकल पाता हैं। इसलिए हमारा…

Read more

कलौंजी मसाला करैला,भिन्डी,परवल,बैंगन,शिमला मिर्च आदि सब्जियोें में भरा जाता है। यह मसाला हल्का भुना होता हैं। इसके लिए जिस सब्जी का कलौंजी आपको बनाना हो। उसे ताजा हरा लेकर साफ पानी से धुल लीजिए। अब चित्रानुसार सब्जी के बीच में लम्बाई की ओर से चाकू से एक तरफ काटिए। और उसे हल्के हाथ से दबाकर उसके भीतर का गूदा पतले चाकू से खुरचकर बाहर निकाल लीजिए। अब प्याज , लहसुन छीलकर बारीक काट लीजिए। इसे प्याज , लहसुन में कलौंजी मसाला , बारीक कटी हरी मिर्च, सब्जी के भीतर का निकाला गया गूदा, नमक, थोड़ा सरसों का तेल मिला दीजिए। कुछ लोग स्वादानुसार इस मिश्रण में अमचुर भी मिलाते है। और कुछ लोग तैयार कलौंजी पर ऊपर सें नींबू का रस या दही मिलाते हैं। मेरे विचार से अमचुर के स्थान पर नींबू का रस अधिक लाभकारी होता हैं। क्योंकि अमचुर त्रिदोषवर्धक होता हैं। जब कि नींबू रक्त में क्षारीयता…

Read more

जलजीरा मसाले का प्रयोग ग्रीष्मकल में अधिक होता है। यह जलजीरा, मीठी शिकंजी, आम के पने का मसाला में भी प्रयुक्त होता है। यह पानीपूरी मसाला के समान ही होता हैं। इसमें लाल मिर्च पाउडर , अमचुर, टाटरी नहीं होता हैं। इसलिए यह पेट दर्द या पेट में वायु प्रकोप होने पर औषधि के रुप में भी प्रयोग किया जाता हैं। पेट दर्द आदि में इसे नींबू के रस के साथ जल में घोलकर पीने से तुरन्त लाभ होता हैं। इसके अतिरिक्त इसके अन्य प्रयोग भी हैं। मीठी शिकंजी बनाना – ताजे जल में जलजीरा मसाला , शक्कर , और नींबू का रस मिलाने से स्वादिष्ट शिकंजी बनती हैं। यह शिंकजी पेट के लिए बहुत लाभकारी होती हैं। इसका प्रयोग ग्रीष्म ऋतु में अवश्य करना चाहिए। यह शरबत शरीर को ताजगी और ताकत देता है। पतले दस्ते में भी इसके प्रयोग से लाभ होता है। यह लू से भी बचाता…

Read more

पानीपूरी मसाले को पानी में घोलकर गोलगप्पें में भरकर खाया जाता हैं। बाजार में बनी बनायी फुल्की मिलती हैं या चिप्स के रुप में भी गोलगप्पे मिलते हैं, उसे मंगाकर तेल में छान लीजिए। पहले से सफेद या हरी मटर उबाल कर रख लीजिए। गोल गप्पे में ऊपर की ओर उंगली से छेद करके उसमे उबला हुआ मटर भरकर पानीपूरी के जल को उसमें भरकर समूचा खायें। यह बहुत स्वादिष्ट होता हैं। उबले हुए मटर में आप हरी धनिया की बारीक कटी पत्ती भी मिला सकते हैं। पानीपूरी में अलग-अलग स्वाद के लिए आप चाट मसाला या रायता मसाला को भी जल में घोलकर भी प्रयुक्त कर सकते हैं। कुछ लोग मीठी फुल्की पसन्द करते हैं। इसके लिए चाट मसाला ”र्शीषक” में मीठी चटनी बनाने की विधि के अनुसार चटनी बनाकर प्रयोग करना चाहिए।पानीपूरी मसाला में अमचुर, मिर्चा एवं नमक का मिश्रण विद्यमान हैं। परन्तु यदि आपको खट्टा कम लग…

Read more

चाट खाने का शौक प्रायः सभी को होता है। बहुत ही स्वादिष्ट होने के कारण यह प्लेट और उंगली चाट-चाट कर खाया जाता है। सम्भवतः इसी कारण इसका नाम “चाट मसाला” पड़ा। चाट बनाने के लिए अनेक प्रकार की सब्जियों एवं अनाजों के साथ विभिन्न प्रकार के मसालों आदि की भी आवश्यकता पड़ती हैं। इसे सुलभ करने के लिए चाट मसाले को बनाया गया।हमारे समूह द्वारा निर्मित चाट मसाला भुना हुआ बहुत ही स्वादिष्ट होता हैं। चाट मसाले के अनेक प्रयोग है। जैसे मटर उबाल कर उसमें चाट मसाला मिला दीजिए। यदि आपको नमक मिर्च अधिक पसन्द है तो उसे अलग से मिला लीजियें। ऊपर से मूली का कद्दूकस किया हुआ लच्छा,हरी मटर और बारीक कटी हरी मिर्च से सजाकर सर्व कीजिए। इस चाट में आप दही या नींबू का रस भी मिला सकते हैं।  इसी प्रकार उबले आलू को छीलकर बारीक काटकर उसमें चाट मसाला मिलाकर दही और हरी…

Read more

Raita

भारतीय भोजन में रायता बहुत प्राचीन काल से प्रयुक्त होता आ रहा हैं। रायता जठराग्नि को तीव्र करने वाला , पाचक और बलवर्धक होता हैं। रायता शुद्ध दूध की ताजी दही का होना चाहिए। बासी दही का रायता खट्टा और पित्तवर्धक होता हैं। रायता अनेक प्रकार के बनते हैं। जैसे बूंदी का रायता , लौकी का रायता, केले और मेवे आदि का रायता । यहाँ कुछ रायता बनाने की विधियाँ दी जा रही हैं- बूंदी का रायता – बूंदी का रायता बनाने के लिए घर में शुद्ध बेसन की बूंदी छान लें या बाजार से अच्छे मानक ( ठमेज ुनंसपजलद्ध की छनी हुई बूंदी खरीद लें। यदि घर पर बूंदी छाननी हैं तो बेसन को शहद जैसा गाढ़ा घोलकर आधा घंटा रख दें। तत्पश्चात् बेसन को हल्का फेंटकर कढा़ई में घी गर्म कर तेज आंच पर बूंदी छानें। हल्का सुनहरा रंग होने तक बूंदी तले और उसके बाद कढा़ई से…

Read more

60/69