नींबू Rutaceae परिवार का सदस्य है। जिसे संस्कृत में जंबीरम एवं हिंदी में नींबू कहते हैं। आंग्ल भाषा में यह Lemon कहलाता है।नीबू एक सर्वसुलभ वनस्पति है। यह स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभकारी हैं।नींबू हमेशा कागजी ( पतले छिलके वाला ) लेना चाहिए। आयुर्वेद के मतानुसार नीबू रुचिकर,उष्णवीर्य, पाचक, अग्निवर्धक, सुधावर्धक,तीखा एंव लघुपाक है। यह उदर रोग, ज्वर, खाँसी, वमन, प्यास, पीलिया एंव वायुविकार मे हितकर है। पित्त-विकार वालों के लिए नींबू रामबाण है। नींबू में साइट्रिक एसिड अधिक मात्रा में पाया जाता है।इसके अतिरिक्त इसमें विटामिन सी,ए,बी,कैल्शियम, फास्फोरस ,पोटेशियम एवं फाइबर भी पाया जाता है। नींबू में विटामिन सी अधिक होने के कारण यह जुकाम और उससे होने वाले बुखार में लाभकारी है। साथ ही यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।यह चिकनाई को समाप्त करता है एवं यकृत तथा आंतों को लाभ पहुंचाता है। नींबू का रस कोलेस्ट्रोल एवं इंसुलिन को भी संतुलित करता है।इसका अनेक गृहीय औषधियों…

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Aam Ka Meea Aachar

यह Anaacardiaceae वर्ग का पौधा है जिसका वानस्पतिक नाम मैंगिफेरा इंडिका लिन है। आम के बाग समस्त भारत वर्ष मे पाए जाते हैं।स्थान विभिन्नता के कारण आम की अलग-अलग प्रजातियां पाई जाती हैं।भारत में आम की लगभग 650 प्रकार की प्रजातियां पाई जाती हैं। आम के अनेक प्रकार के अचार बनते हैं। जैसे आम का तेल वाला अचार,भरवा अचार,हींग वाला अचार,मीठा अचार आदि। समूह में आम का मीठा अचार दो प्रकार से बनता है। प्रथम प्रकार का अचार शक्कर और मोटे मसाले पर बनता है जबकि द्वितीय प्रकार का आम का मीठा अचार देसी गुड़ ,गरम मसाले और मेवे पर बनता है।आम का मीठा अचार बनाने के लिए पहले कच्चे आम का छिलका छीलकर, कद्दू कस करते हैं। तत्पश्चात उसमें शक्कर, हल्का नमक और मसाला मिलाकर धूप में पकने के लिए रखते है। कुछ संसाधक आम को कद्दूकस न करके उसे छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लेते हैं।शक्कर मिलाने के समय…

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जिस प्रकार अनाजों का राजा चना और मसालों का राजा कालीमिर्च को माना गया है।उसी प्रकार फलों का राजा आम माना गया है। खाद्य पदार्थ के गुणों के कारण ही उसको उच्च पद प्राप्त होता है। आम का हींग वाला अचार बनाने के लिए आम का छिलका छीलकर, उसे छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लेते हैं। तत्पश्चात उसमें नमक और मसाला मिलाकर कई दिनों तक धूप में रखते हैं। इसमे तेल नही होता है। चूंकी इसमें हींग पर्याप्त मात्रा मे पड़ती है। इसलिए इसे आम का हींग वाला अचार कहते है।कुछ लोग इसे मिर्चाेली भी कहते है। यह खाने मे बहुत ही तेज होता है। हमारे किसी भी अचार में सोडियम बेंजोएट,बेंजोइक एसिड या सल्फर डाइऑक्साइड जैसे अप्राकृतिक परिरक्षको (Preservative)का प्रयोग नहीं होता है।केवल प्राकृतिक परिरक्षक जैसे तेल,चीनी,नमक इत्यादि का ही प्रयोग होता है।यह अचार धूप में पकाए जाते हैं। इनका स्वाद अलग ही होता है। घटक – हल्दी, लाल कुटा…

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हमारे समूह द्वरा आम, लाल भरूआ मिर्च, कटहल, हरी मिर्च, नीबू, करेला, लहसुनहट, आंवला एवं मिश्रित अचार बनाया जाता है। इनमे आम और नीबू के अनेक प्रकार के अचार बनते है। जैसे आम का तेल वाला अचार, आम का भरूआ काबुली चने का अचार, आम का मीठा अचार, नीबू का नमक पर सादा अचार, नीबू हरी मिर्च और अदरक का मसालेदार अचारए नीबू का तेल वाला अचार आदि। हमारे अचार मे किसी भी प्रकारके अप्राकृतिक परिरक्षको जैसे बेंजोइक एसिड,सोडियम बेंजोएट,सल्फर डाइऑक्साइड का प्रयोग नही होता है। केवल प्राकृतिक परिरक्षक जैसे नमक, चीनी, तेल, मसाले इत्यादि का प्रयोग होता है।

पानीपूरी मसाले को पानी में घोलकर गोलगप्पें में भरकर खाया जाता हैं। बाजार में बनी बनायी फुल्की मिलती हैं या चिप्स के रुप में भी गोलगप्पे मिलते हैं, उसे मंगाकर तेल में छान लीजिए। पहले से सफेद या हरी मटर उबाल कर रख लीजिए। गोल गप्पे में ऊपर की ओर उंगली से छेद करके उसमे उबला हुआ मटर भरकर पानीपूरी के जल को उसमें भरकर समूचा खायें। यह बहुत स्वादिष्ट होता हैं। उबले हुए मटर में आप हरी धनिया की बारीक कटी पत्ती भी मिला सकते हैं। पानीपूरी में अलग-अलग स्वाद के लिए आप चाट मसाला या रायता मसाला को भी जल में घोलकर भी प्रयुक्त कर सकते हैं। कुछ लोग मीठी फुल्की पसन्द करते हैं। इसके लिए चाट मसाला “र्शीषक” में मीठी चटनी बनाने की विधि के अनुसार चटनी बनाकर प्रयोग करना चाहिए। पानीपूरी मसाला में अमचुर, मिर्चा एवं नमक का मिश्रण विद्यमान हैं। परन्तु यदि आपको खट्टा कम…

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भारतीय मसालो मे गरम मसाले का महत्वपूर्ण स्थान है। गरम मसाले मे अनेक प्रकार के मसालो का मिश्रण रहता है, जो गरम होते है। इसी कारण इन्हे गरम मसाला कहते है। वैसे तो प्राचीन भारत के लोग मसालो का अधिक प्रयोग नही करते थे,परन्तु भारत मे मुगलो के आगमन के बाद गरम मसालो का प्रयोग बहुतायत से होने लगा। मुगल गरम मसालो का प्रयोग अत्यधिक मात्रा मे करते थे। जो भी हो गरम मसालो की उपयोगिता आज भी बरकरार है। इसके प्रयोग से भोजन स्वादिष्ट बनता है एंव पाचन क्रिया भी ठीक रहता है। परन्तु गरम मसाले का प्रयोग कम मात्रा मे करना चाहिए अधिक मात्रा मे इसके प्रयोग से नाना प्रकार के रोग उत्पन्न होते है। हमारे समूह द्वारा दो प्रकार के गरम मसाले बनाये जाते है। एक सामान्य और दूसरा स्पेशल। सामान्य गरम मसाला सब्जी आदि के लिए ठीक रहता है जबकि स्पेशल गरम मसाला मंसाहार के लिए…

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लगभग 500 वर्ष पूर्व भारतीय लाल मिर्च से अनभिज्ञ थे। भारत में इसके पौधे को लाने वाले पुर्तगाली माने जाते है। धीरे-धीरे इसकी खेती पूरे देश में की जाने लगी। वस्तुतः इसका मूल स्थान दक्षिणी अमेरिका माना जाता है। पेरू के आदिवासी प्रागैतिहासिक काल से ही लाल मिर्च से भिज्ञ थे। यह एक महत्तवपूर्ण मसाला है। लाल मिर्च सोलेनेसी परिवार का सदस्य है। इसका नाम कैप्सिकम एनुअमलिन है। लाल मिर्च वास्तव मे इसी जाति का सूखा हुआ फल है। विभिन्ननामः- हिन्दी, पंजाबी एवं उर्दू में लाल मिर्चा, अंग्रेजी में चिली, गुजराती में मर्चा, कंन्नड़ में मेंसिनकाई, तमिल में मिलगै, बंगला एवं उड़िया में लंका कहते है। गुणधर्म – यह ऊष्णवीर्य, तीक्ष्ण, अग्निवर्धक, रूचिकर, रक्तपित्त नाशक और कफनाशक है। चर्मरोग, कृमिरोग, विषदोष एवं व्रणदोष में उपकारी है। रासायनिक संघटन –जलांश: 7.9%; प्रोटीन: 13.8%; वसा: 10.4%; कच्चा रेशा: 19.00% ; कार्बोहाइड्रेट: 40.1%; कुल भस्म: 7.1%; कैल्शियम 0.2%; लौह: 0.22%; फास्फोरस:0.3%; सोडियम: 0.02%;…

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भारत में धनिये के बीजों और उसकी ताजी पत्तियों का प्रयोग अतीत काल से होता आ रहा है। संभवतः यह ऐसा प्रथम मसाला है जिसे मानव ने पहली बार प्रयोग किया। ईसा से 5000 वर्ष पूर्व मनुष्य को इसकी जानकारी थी। इसके प्रयोग से साग-सब्जी, सलाद, चटनी बहुत स्वादिष्ट और सुगन्धित बनते हैं। इसका मूल स्थान भूमध्य सागर का तटवर्ती प्रदेश है। भारत, मोरक्को, रूस, हंगरी, पोलैण्ड, मैक्सिको, अमेरिका आदि देशों में इसका उत्पादन व्यापारिक स्तर पर होता है। भारत में यह सर्वत्र बोया जाता है। यह अवेलीफेरी परिवार का सदस्य है। इसका वानस्पतिक नाम कोरिएंड्रम सैटाइयमलिन है। इसका पौधा एक से फुट तीन फुट तक ऊँचा होता है। शीतऋतु के अंत में इसमें फल और फूल आने लगते हैं। फूल सफेद या बैंगनी रंग के होते हैं और फल गोलाकार छोटी-छोटी गोलियों जैसे पीले और धानी रंग के होते हैं, जो धनिया कहलाता है। विभिन्न नाम – संस्कृत-धन्यक, हिंदी-धनिया,…

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हल्दी भारत का एक अतिप्राचीन और महत्तवपूर्ण मसाला है। यह मूलरूप से भारत का पौधा है। विश्व मे सर्वाधिक हल्दी भारत में पैदा होती है।प्राचीन काल से ही भारत हल्दी का निर्यातक रहा है। निर्यात किए जाने वाले मसालो मे हल्दी का स्थान प्रमुख है। हल्दी जिंजिबेरेसी परिवार का सदस्य है। जिसका वानस्पतिक नाम ‘कर्क्यूमा लौगा लिन’ है। हल्दी वास्तव में इस पौधे की मोटी एवं सूखी जड़ो को कहते हैं कि जिसे उबाल कर, साफ कर, सुखा लिया जाता है। यह छोटे तने या गुच्छेदार पत्तो वाला बारहमासी पौधा होता है। भारत मे हल्दी की पैदावार मुख्यतः दक्षिण भारत एव बिहार मे होती है। दक्षिण भारत की हल्दी रंग एवं गुणो मे सर्वश्रेष्ठ होती है। भारत के अतिरिक्त इसकी व्यवसायिक स्तर पर खेती चीन एव श्रीलंका में होती है। विभिन्न नाम – संस्कृत -हरिद्रा, भद्रा, मंगलप्रदा, सुवर्णवर्णा, हिन्दी- हल्दी, हरदी, उमा, निशा, जयन्ती अंग्रजी-टर्मेरिक (Turmeric), बंगला-हुलद, गुजराती- हलधर, हल्दी,…

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हींग तजाकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान और पाकिस्तान मैं पैदा होती है। भारत में यह कश्मीर में पैदा होती है। अपनी सुगंध और गुणों के कारण हीग विश्वविख्यात है। यह हरीतक्यादि वर्ग और गर्जर कुल (अबेलीफेरी) का बहुवर्षजीवी वृक्ष है। इसका वानस्पतिक नाम फेरूला एसफेटिडा लिन है। हींग का वृक्ष 6 से 8 फुट ऊँचा होता है। इसके पत्ते कोमल, रोयेदार और लंबे डिम्बांकृति के होते है। हींग के वृक्ष की जड़े गाजर जैसी मोटी होती है। यह वृक्ष जब 4-5 वर्ष का हो जाता है तब इसकी जड़ो का व्यास 12-15 से0मी0 तक हो जाता है। हींग प्राप्त करने के लिये मार्च-अप्रैल मे पुष्प आने के पूर्व ही इसकी हरी जड़ो का बाह्य आवरण हटा दिया जाता है और जड़ को चोटी के पास से काट दिया जाता हैं। जड़ की कटी सतह से दूधिया रस बहने लगता है। कुछ दिनोपरान्त वह दूध गाढ़ा हो जाता है, तब उसे जड़…

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