सिंघाड़ा फलवर्ग और श्रृंगाटकादि कुल ( Onagraceae) का एक सर्वसुलभ फल है, जो कि प्रायः तालाब, पोखरो आदि मे उगाया जाता है। इसकी बेले पानी सतह पर तैरती रहती है तथा इसकी जड़े पानी के अन्दर झूलती रहती है। परिपक्व होने पर बेलों पर कांटायुक्त त्रिकोणाकार फल निकलता हैं,जो सिंघाड़ा कहलाता हैं। कच्चा होने पर सिंघाड़ा हरे रंग का होता है परंतु जैसे-जैसे पकता जाता है इसके रंग में कालिमि आ जाती है।इसका छिलका छीलने पर भीतर सफेद रंग की ठोस गिरी निकलती है जो खाने में अत्यंत स्वादिष्ट होती है।इसे लोग प्राय कच्चा ही खाते हैं,परंतु कुछ लोग उबाल कर भी खाते हैं। सिंघाड़े की गिरी को सुखाकर उसका पाउडर बनाया जाता है, जिससे नाना प्रकार के व्यंजन बनते हैं। विभिन्न नाम -संस्कृत– श्रृंगाटक(चूंकी इसमें सीग के समान दो कांटे रहते हैं, इसलिए इसे श्रृंगाटक कहते हैं), जलफल, त्रिकोणफल, जलकण्टक। हिन्दी, तमिल और उर्दू– सिघाड़ा। गुजराती– सिंगोड़ा। कशमीर– गौनरी।…

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घुंवास उर्द की घोई ( छिलका रहित दाल ) का दरबरा आटा होता है। इसकी कचौड़ी, फरा, दहीबड़ा और बरी बनती है। चने की दाल के समान इसके बने व्यंजन भी बहुत स्वादिष्ट होते है। आयुर्वेद के मतानुसार उर्द शीतवीर्य, स्निग्ध और भारी है। यह बल, शुक्र, पुष्टि, रूचि, कफ और पित्तवर्धक है। यह रक्तपित्त को कुपित करने वाली है, परन्तु बवासीर मे लाभकारी है। उर्द के बने व्यंजन के साथ दूध का प्रयोग अवश्य करना चाहिए। इससे पित्त प्रकोप शान्त होता है, साथ ही उर्द की मासवर्धक क्षमता भी बढ़ जाती है। मासवर्धक होने के कारण इसे मास की दाल भी कहते है। घुंवास के कुछ व्यजंन बनाने की विधियां नीचे दी जा रही है। कचौड़ी – कचौड़ी के लिए घुंवास को पानी मे शहद जैसा गाढ़ा घोल कर पाच मिनट रख दीजिए। तत्पश्चात उसे हल्का फेट लिजिए। यदि घोल गाढ़ा है और फेटने मे असुविधा हो रही हो…

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समूह द्वारा भरथना ( जिला इटावा उ0 प्र0 ) की सूखी और स्वच्छ दाल पिसवाकर बेसन तैयार कराया जाता है। हमारा बेसन छना हुआ, नमी रहित शुद्ध एंव स्वादिष्ट होता है। आयुर्वेद मे चने की दाल को शीतवीर्य, रूखी, लघु, बलकारक, रूचिकारक, रक्तपित्त, कफ,पित्त एंव ज्वरनाशक कहा गया है। यह हल्की वायुवर्धक है। मधुमेह मे चने की रोटी ( छिलका सहित ) बहुत लाभकारी होती है। अनाजो मे जितने अधिक चने के खा़द्य पदार्थ बनते है उतने किसी अन्य अनाज के नही बनते है। इसीलिए चने को अनाजो का राजा कहा गया है। कहावत है ‘ खाये चना रहे बना ’। चने की दाल, सब्जी, रोटी, पकौड़ी, हलुवा, कढ़ी, एंव अनेक प्रकार की मिठाईयाँ बनती है। कहां जाता है कि,जब औरंगजेब ने शाहंजहाँ को लालकिले मे कैद किया था तो उससे एक अनाज मांगने को कहा।तब शाहंजहाँ ने चना ही मांगा था। इस प्रकार चने का विशेष महत्व है।

। मूंग Papilionaceae वर्ग का पौधा है। इसे संस्कृत में मुंदग और अंग्रेजी में Green grownया green soyaकहते हैं। आयुर्वेद के मतानुसार मूंग लघुपाक, उष्णवीर्य,रूखी, धारक, रुचिकर, कफ- पित्त नाशक, ज्वरनाशक, नेत्र हितकारी, शारीरिक बल और ओजवर्धक है। आचार्य सुश्रुत का कहना है कि सब प्रकार की दालों में मूंग की दाल गुणों में सर्वश्रेष्ठ हैं। अंकुरित मूंग कब्जनाशक है। अंकुरित मूंग में प्रोटीन की मात्रा अपेक्षाकृत अधिक होती है।मूंग की दाल का हलुवा बनता है जो बहुत ही स्वादिष्ट और बलवर्धक होता है। बरी के समान मुंगौरी भी बनाई जाती है। मुंगौरी मूगं की धोई (छिलका रहित दाल) की बनती है। इसके पाउडर को भी रात्रि मे पानी से सान कर रख दिया जाता है। दूसरे दिन प्रात: काल उसे फेट कर जीरा और हल्का हींग मिलाकर, चने या मटर के दाने के आकार मे धूप मे कपड़े पर डाला जाता है। इसकी भी सब्जी बरी की सब्जी के…

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बरी की सब्जी बनती है। बरी के लिए धुवांस (उड़द की धोई का दरबरा आटा)को लिया जाता है। रात्रि मे इसे पानी से शहद जैसा गाढ़ा सान कर रख दिया जाता है। धुआस सानने मैं पानी अधिक लगता है। इसलिए सानने पर विशेष ध्यान देना चाहिए।पानी कम रहने पर वह कड़ा हो जाता है और उसमें गांठे पड़ जाती हैं। दूसरे दिन प्रातःकाल उसमें कद्दूकस किया हुआ पेठा, दरबरा गरम मसाला, लाल मिर्च, और हींग भलीभाति मिलाकर फेट लेते हैं और धूप मे किसी कपड़े या चटाई पर बरी डालते है। बरी का आकार अपनी इच्छा पर निर्भर करता है।बरी के लिए धूप बहुत कड़ी होनी चाहिए। कड़ी धूप मे ही बरी फूलती है। यादि फेटाई कम हुई हो तो भी धूप कड़ी होने पर वह फूलेगी और सब्जी बनाने पर गल जायेगी। यदि धूप कड़ी नही है, तो सारा समान अच्छा होने पर भी बरी नही फूलेगी। इसलिए धूप…

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Urd Papad

यह Blackgeguminosae वर्ग का पौधा है। संस्कृत में इसे माषम कहते हैं और अंग्रेजी में Black gram या Black soya कहते हैं। आयुर्वेद के मतानुसार उड़द शीतवीर्य, गुरूपाक, स्निग्ध, रूचि, बल, पुष्ट, कफ, पित्त और मेदवर्धक है। यह वायुरोग, बवासीर, शूल और श्वास रोग मे हितकर है,जबकि रक्त पित्त मे हानिकारक है। समूह द्वारा उरद का पापड़ बनाया जाता है। यह अत्यतं स्वादिष्ट होता है। अन्य पापड़ो की तरह यह भी तलकर या भूनकर नाशते और खाने पर खाया जाता है। भारतीय उरद के पापड़ का विवाहादि उत्सवो मे बहुतायत मात्रा मे प्रयोग करते है। प्रयुक्त सामग्री- उरद की दाल, जीरा, कालीमिर्च, हींंग।

Sabudane Ka Papad

यह तालादि कुल ( च्ंसउंम ) का डमजतवगलसवदतनउचीसप नामक वृक्ष के तने का गूदा है। यह मूल रूप से पाउडर रूप मे होता है। जो कार्यशालाओ मे लाकर यंत्रो द्वारा छोटी – छोटी गोलियो के रूप मे ढाला जाता है। इसका वृक्ष मुख्यतः जावा, सुमात्रा और बोर्नियो मे होता है। आयुर्वेदानुसार साबूदाना द्वितीय वर्ग की गर्म और तर है। यह लघुपाक है और दुर्बल रोगियो के लिये पथ्याहार है। इसलिए दूध मे पकाकर इसे दिया जाता है। समूह द्वारा साबूदाने का पापड़ बनाया जाता है। यह सेधा नमक पर बनता है, इसलिए इसे व्रत मे भी खाया जाता है। इसे तेज आँच पर घी या फार्चून मे तला जाता है। घटक- साबूदाना,सेन्घानमक।

समूह द्वारा आलू की चिप्स भी बनायी जाती है। जो घी या तेल मे तली जाती है। यह सादी होती है। इसलिए इसमे उपर से नमक, चाट मसाला, रायता मसाला, जलजीरा या पानीपुरी मसाला मिलाकर खाया जाता है। नमक रहित होने के कारण इसे व्रत में भी प्रयोग कर सकते है। यह जालीदार भी बनती है।

आलू ऊष्ण, तीक्ष्ण, लघुपाक, कफनाशक, बल एव वायुवर्धक है। यह धान्यक (स्टार्च) प्रधान खाद्य है। इसलिए डायबिटीज और वात रोगी को इसके सेवन से बचना चाहिए। हमारे समूह द्वारा सफेद आलू का पापड़ बनाया जाता है। यह धीमी आंच पर भूनकर या तेल मे तलकर नाश्ता या खाने के साथ खाया जाता है। हमारे यहाँ यह सेंधा नमक और मूंगफली के तेल मे बनता है।इसलिए इसे व्रत मे भी खया जाता है। बिना लाल मिर्च के सदापापड़ भी बनता है। अनेक मांह तक संग्रह करने के लिए इसे बीच-बीच में धूप दिखलाना पड़ता है और ठण्डा कर एयर टाइट कंटेनर में संग्रहित किया जाता है। किसी भी हालत में पापड़ में हवा नहीं लगनी चाहिए। हवा लगने से पापड़ मुलायम पड़ जाता है और उसे खराब होने का डर रहता है। घटक – आलू, जीरा, लालमिर्च कुटा, सेंधा नमक और मूंगफली का तेल। ऑर्डर देने पर यह मिर्चा रहित एवं…

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भारत मे कई प्रकार के स्वादिष्ट खाद्य बनाए जाते है। जिनमें पापड़ भी एक है। पापड़ कई प्रकार के होते है। जैसे, आलू का पापड़,मूं ग और उरद की दाल का पापड़ एवं साबुदाने का पापड़ आदि। समूह द्वारा उपर्युक्त सभी प्रकार के पापड़ बनाये जाते है।

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