स्नान

स्नान

व्यायाम आदि से निवृत होकर सर्वप्रथम स्नान करना चाहिए। हमें प्रतिदिन स्नान करना चाहिए। किसी विद्वान ने कहा-

‘‘शतं विहाय भोक्तच्यं सहस्त्रं स्नानमाचरेत्।
लक्षंविहाय दातव्यं कोटि व्यक्त्वा प्रभुं भजेत्।।‘‘

अर्थात सौ काम छोड़कर भोजन करे और हजार काम छोड़कर स्नान करे। लाख काम छोड़कर दान करे और करोड़ काम छोड़कर प्रभु का भजन करे। इसलिए प्रतिदिन स्नान अवश्य करना चाहिए। नहाने के लिए हैण्डपम्प, कुंआ अथवा ट्यूबबेल का पानी उत्तम होता है। क्योंकि ये पानी मौसम के अनुसार अपना तापक्रम बनाये रखते है। और शरीर में रक्त संचालन संतुलित रखते है।

स्काटलैण्ड की 140 वर्षीय मरियम नाम की महिला प्रतिदिन प्रातः ठण्डे पानी से स्नान करती थी और इसके बाद वह चार मील बिना रुके टहलने को जाती थी। इस कारण वह इतनी अधिक उम्र में भी कभी बीमार नहीं पडी और दीर्घ जीवन प्राप्त किया। इसलिए शरीर को स्वच्छ, पवित्र और निरोग रखने के लिए प्रतिदिन स्नान करना परम आवश्यक है। स्नान करने से रुप, कान्ति, तेज, बल, पवित्रता, दीर्घायु, आरोग्यता, उत्साह आदि प्राप्त होते है। स्नान करने से शरीर के भीतर की स्वाभाविक उष्णता भीतर रह जाने से जठराग्नि प्रदीप्त होती है। इसीलिए स्नान करने के पश्चात भूख लगती है।

Baby Bathing


जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है कि नहाने के लिए हैण्डपम्प, कुंआ आदि का जल अच्छा होता है। परन्तु नदी में नहाना भी बहुत अच्छा होता है। नदी में नहाने पर शरीर जल में पूरा डूबा रहता है। जिससे पानी शरीर पर चारों और एक साथ अपना दबाव बनाता है । फलस्वरूप रक्त का संचार तीव्र गति से होता है।

शावर के नीचे नहाना भी ठीक होता है यदि सम्भव हो तो बंद स्नानागार में निर्वस्त्र होकर नहाना चाहिए। इससे शरीर के सभी अंगो पर पानी अपना प्रभाव डालता है और सफाई भी भलिभाति हो जाती है।नहाने के लिए मुलतानी मिट्टी या वेसन का प्रयोग करना चाहिए। मिट््टी से नहाना सर्वोत्तम, सस्ता एवं पूर्णतया प्राकृतिक है। यदि आप कुछ दिन तक मिट्टी से नहाते है तो आगे चलकर आपको इसकी आदत पड़ जायेगी और आप सदैव इसी से नहायियेगा। मिट्टी से नहाने से शरीर ठण्डा रहता है सिर में रुसी, दाने, फोड़े-फुन्सी आदि नहीं होते जबकि साबुन में कास्टिक होने के कारण इससे नहाने से शरीर गर्म रहता है और अनेक प्रकार के चर्म रोग होने का सम्भावना बनी रहती है। साथ ही कास्टिक आँखो मे भी लगता है। मिट्टी को शरीर पर रगड़ कर मलना पड़ता है, इससे शरीर की मालिश भी हो जाती है। इसलिए मुल्तानी मिट्टी, स्थानीय मिट्टी, नदी की मिट्टी या बेसन से नहाना चाहिए। खेत की मिट्टी से नहीं नहाना चाहिए क्योंकि उसमें रासायनिक खाद का प्रयोग होता है। जो त्वचा के लिए हानिकारक होता है। खूब मल-मल कर नहाना चाहिए। शरद ऋतु में सप्ताह में एक बार गुनगुने पानी से नहाना चाहिए। जहाँ तक व्यायाम के पश्चात नहाने का प्रश्न है तो व्यायाम के कम से कम आधे घण्टे पश्चात ही नहाना चाहिए।


नहाने के बाद शरीर को किसी स्वच्छ एवं रोयेदार तौलिया से खूब रगड़-रगड़ कर पोछना चाहिए। तत्पश्चात ध्यान करना चाहिए। ध्यान से लोक एवं परलोक दोनो सुधरता है। इसलिए प्रतिदिन ध्यान अवश्य करना चाहिए।
स्नान के कम से कम आधे घण्टे पश्चात ही जलपान या भोजन करना चाहिए। यदि भोजनोपरान्त नहाना आवश्यक हो तो भोजन के लगभग ढाई या तीन घण्टे पश्चात ही नहाना चाहिए। यदि शरीर ठण्डा है या बहुत कमजोर तो पहले उसे मालिश करके गर्म करना चाहिए और तब स्नान करना चाहिए। वैसे भी जाड़े में तेल मालिश करके नहाना अच्छा रहता है।

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