सरसों

सरसों

यह धान्यवर्ग और राजिकाकुल ( Cruciferae) का क्षुप है, जिसकी खेती समस्त भारत मे होती है। इसका पौधा एक से तीन फुट तक उँचा होता है। जिसमे पीले रंग के सुन्दर पुष्प होते है। इसके फल मार्च के महीने मे पक जाते है। सरसो श्वेत, पीत और श्याम वर्ण की होती है समस्त सरसो के गुण समान है परन्तु इनमे श्वेत सरसो उत्तम है। सरसो से 31 से 35 प्रतिशत तक तेल निकलता है। यह राई के तेल़ के समान दाहजनक नही है।

विभिन्न नाम-

रासायनिक संघटन-

गुर्ण धर्म एंव उपयोग – यह रस मे कटु एंव तिक्त, विपाक मे कटु, वीर्य मे उष्ण एंव गुण मे स्निग्ध है। सरसो अग्निवर्धक, पित्तवर्धक, ह्रदयोत्तेजक, मूत्रल, कफ और वाद नाशक है। खुजली कोढ़ और पेट के कीड़े को नष्ट करती है। भूतबाधा दूर करने मे तंात्रिकगण इसका प्रयोग करते है।

सरसो के पत्तो के शाक की सब्जी बनती है। इसे पंजाब मे मक्के की रोटी के साथ खाते है। परन्तु ध्यान रहे सरसो का शाक रूक्ष, तीष्ण, मल एंव मूत्र को बद्ध करने वाला एंव त्रिदोषवर्धक है। चरक ने सरसो के शाक को अधम से अधम माना है, परन्तु इसमे विटामिन ए और के प्रचुर मात्रा मे पाया जाता है।

सरसो का पौधा

सरसो का तेल- रस और विपाक मे कटु, उष्ण स्निग्ध, लघु एंव रक्तपित्त प्रकोपक है। सरसो का तेल कफ, वात, शुक्र, कण्डु, कुष्ट और कृमि नाशक है। सरसो के तेल को सैधव लवण के चूर्ण के साथ मिलाकर मंजन करने से पायरिया मे लाभ होता है। यह मंजन लगभग आधे धंटे तक दाँतो मे लगा रहना चाहिए। इस बीच मुँह मे पीक आने पर थूक देना चाहिए। आधे धंटे के पश्चात् कुल्ला कर लेना चाहिए। इससे मसूड़ो से पीव आना बंद हो जाता है और दाँत मजबूत होते है।

सरसो के तेल को कपूर के साथ मिलाकर मालिश करने से गठिया मे लाभ होता है। सरसो का तेल त्वचा को कोमल एंव मांस को पुष्ट करता है। सीने मे ठंड लग जाने पर सरसो के तेल मे लहसुन, अजवाइन और हल्दी पका कर मलना चाहिए इससे शीघ्र लाभ होता है। शुष्कता नाशक होने के कारण शीत ऋतु मे लोग इसके तेल की मालिश करते है।

भारत मे सरसो के तेल मे सब्जी छौक कर बनती है, जो बहुत स्वादिष्ट होती है। इसके अलावा विभिन्न प्रकार के अचार मे इसका प्रयोग होता है। जिससे अचार दीर्घकाल तक स्वादिष्ट और सुरक्षित रहता है। सरसो का तेल एक प्राकृतिक परिरक्षक भी है। समूह द्वारा पीली व काली साफ सरसो का विक्रय होता है। इसके अतिरिक्त यह हमारे अचार मसाले एंव विभिन्न प्रकार के अचारो मे भी प्रयुक्त होता है।

अहितकर- पित्तप्रधान प्रकृति वालो को

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