व्यायाम एंव आहार

व्यायाम एंव आहार

व्यायाम के साथ-साथ आहार पर भी ध्यान देना चाहिए आहार का जीवन मे बहुत महत्ंव है। आर्युवेद में कहा गया है कि –

‘‘वयोबल शरीराणि देश कालाशनानिच।
समक्ष्यि कुर्याद व्यायाममन्यथा रोगमाप्नुयात्।।‘‘

अर्थात्- मनुष्य को अपनी आयु बल, शारीरिक स्थित, देश काल तथा अपना भोजन आदि देखकर ही व्यायाम करना चाहिए। यदि कोई इन बातों को ध्यान में नही रखेगा तो वह रोग से आकारान्त होगा। इसलिए व्यक्ति को उपयुक्त बातों को ध्यान में रखते हुए टहलना और व्यायाम आदि करना चाहिए। आहार सदैव शुद्ध, सुपाच्य, संतुलित एवं ताजा होना चाहिए। जब तक हमारा आहार और विहार जिसमें हमारा व्यायाम और रहने का ढ़ग आता है दोनो उचित नहीं होगे तब तक हमें पूर्ण स्वास्थ लाभ नहीं मिलेगा। जहाँ तक आहार का समबन्ध है, हम यूरोपवासियों की तुलना में अधिक प्राकृतिक भोजन लेते है परन्तु फिर भी हम रोगी और कम उम्र वाले होते है। वे हमारी तुलना में अधिक मात्रा में धूम्रपान, सुरापान एवं मंासाहार करते है। परन्तु फिर भी वे मोटे ताजे बने रहते है और दीर्घजीवी होते है। यह सत्य है कि उनके देश की भौगोलिक स्थिति हमारे देश की भौगोलिक स्थिति से भिन्न है। उनका देश शीत प्रधान देश है। परन्तु यह भी सत्य है कि वे नियमित रुप से व्यायामसेवी होते है चाहे वह खेल के रुप में ही क्यों न हो। इसीलिए ओलम्पिक खेलों में अधिकांश स्वर्ण एवं रजत पदक उन्हीं की झोली में जाते है और इसी व्यायाम के दम पर वह निरोग रहते हुए हमसेअधिक उम्र पाते है। उनके यहाँ बालक, किशोर, युवक, वृद्ध एवं महिलाए सभी नियमित रुप से व्यायाम करते है। परन्तु हमे यूरोपवासियों की तरह धूम्रपान या सुरापान की नकल नहीं करनी चाहिए। विश्व के प्रत्येक व्यक्ति से, पदार्थ से अच्छे गुण ही ग्रहण करने चाहिए शेष को छोड देना चाहिए।


व्यायाम से जठाराग्नि तीव्र होती है इसलिए भोजन यदि कभी अनियमित भी हो जाता है तो भी पेट उसे पचा लेता है। जैसे तीव्र जलती हुई अग्नि में कुछ भी डाला जाता है तो वह शीघ्र ही जल जाता है परन्तु वहीं सुलगती हुई अग्नि में यदि कुछ डाला जाता है तो उसे जलने में समय लगता है यह भी हो सकता है कि वह जले ही न। आप देखते होगें कि कभी-कभी आपको किये हुये भोजन की कच्ची-कच्ची ढकार आती है। यह वह अवस्था बतलाती है कि आप द्वारा किया गया भोजन अभी पूर्णतया पच नहीं पाया है और आप अपना भोजन या कोई भी खाद्य पदार्थ तब तक न खाये जब तक कि कच्ची डाकार आना बन्द न हो जाये। इस प्रकार जब जठाराग्नि तीव्र होती है तो सब कुछ खया पिया जलाकर पचा देती है परन्तु जब कमजोर या मन्द होती है तो खाया हुआ पदार्थ देर से जलता है और कभी कभी तो बिना पचे ही मलमार्ग से ही निकल जाता है। तब शरीर का संवर्धन नहीं हो पाता है इसलिए व्यायाम अति आवश्यक है। कुछ लोग कहते है कि हमें प्रातःकाल उठने का या व्यायाम करने का समय ही नहीं मिल पाता है यह सब एक बहाना है। हम यह जानते है कि जहा चाह होती है वहा राह होती है। दृढ़ इच्छा शक्ति के द्वारा व्यक्ति असंभव से असंभव कार्य कर सकता है फिर व्यायाम क्या चीज है।

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