लौंग

लौंग

लौंग मूल रूप से मलक्का द्वीप का पौधा है। वैसे तो ईसा से सौ वर्ष पूर्व मानव को लौंग की जानकारी थी। 266 ई0 पूर्व में चीनियो को इसका पता चला। परन्तु इसके मूल स्थान का तब पता चला जब सोलहवी सदी में पुर्तगालिया ने मरक्का द्वीप की खोज की। लौंग पूर्वी देशों का एक सबसे प्राचीन और बहुमूल्य मसाला है। तेरहवी शताब्दी में प्रथम बार लौंग का आयात यूरोप में हुआ। धीरे-धीरे इसका पौधा मारिशस, जान्जीबार आदि देशों में पहुँचा। अंग्रेजो के भारत आने से पहले लौंग श्रीलंका पहुँच चुका था। कहा जाता है कि भारत में लौंग का उत्पादन अंग्रेजो ने किया। परंतु मेरे विचार से भारत में लौंग का उत्पादन प्राचीन काल से होता आ रहा है क्योंकि संस्कृत के अनेक ग्रंथों में लौंग का वर्णन प्राप्त होता है। लौग के सबसे बड़े उत्पादक देशो में क्रमशः जंजीबार, मेडागास्कर और इण्डोनेशिया है। मलेशिया, श्रीलंका और हैटी मे भी न्यूनाधिक मात्रा मे लौंग पैदा की जाती है। भारत के दक्षिणी राज्यो में इसकी खेती होती है। वास्तव मे लौग अपनी लता की कली है। जो अपनी कमनीयता, शोभा और सुगंध के लिए प्रसिद्ध है। इसीलिए विभिन्न कवियो में अपनी रचनाओ में इसका वर्णन किया है। उदाहरण के लिए जयदेव ने अपने काव्य ग्रंथ ‘गीत गोविन्द’ में लिखा है। ‘ललित लवंग लते परिशीलन, कोमल मलय समीरे।’
यह मेराशी परिवार का पौधा है। जिसका वानस्पतिक नाम यूजीनीया कैर्थोफाइलस ( स्प्रीगल ) बुलोक एट हेरिसन है।

विभिन्न नाम- संस्कृतः लवंग, लवंगक, देवकुसुम, श्रीपुष्प, शेखर, हिन्दी एंव पंजाबी: लौग, बंग्ला, गुजराती और कन्नड़ः लवंग, तमिलः किरबु, तेलुगु: लवंगलु, मलयालम: ग्रंबू और अंग्रेजी मे क्लोव कहते है। लौंग फ्रांसीसी शब्द क्लोव और अंग्रेजी के क्लाउट शब्द से लिया गया है। ये दोनो कील शब्द के वाचक है, चूकि लवंगकलिका का आकार कील के समान होता है इसलिए अंग्रेजो ने उसे क्लोव कहा।

गुर्ण धर्म एंव उपयोग- आयुर्वेद के मतानुसार यह तीष्ण, लघु, पाचक, रूचिकर, त्रिदोषनाशक , अग्निप्रदीपक, रक्तशोधक एंव नेत्र हितकारी है। ज्वर , खांसी, दमा, श्वास फूलना वमन, शूल , क्षय, कृमि, शिरोरोग एंव दंत रोग मे लाभकारी है।

लौगं रक्त मे श्वेत कणो एंव जीवनीशक्ति को बढ़ाता है। इसी लिए इसे ज्वर और क्षय जैसे रोगो मे एण्टीबैटिक की तरह प्रयोग किया जाता है। कफ निस्सारक गुण होने के कारण खांसी और दमा जैसे रोगो मे यह प्रयुक्त होता है।

लौगं और चिरायता संभाग लेकर पानी मे पीसकर शहद के साथ सेवन करने से ज्वर उतर जाता है। इस प्रकार अनेक प्रकार की औषिधयो को बनाने मे इसका प्रयोग होता है।

फोड़े फुसिंयो पर इसका चूर्ण चन्दन के साथ मिलाकर लेप किया जाता है। लौंग का तेल दांतो और मसूड़ो मे लगाने से दंात के दर्द और मसूड़ो के सूजन मे लाभ होता है। अपने तीष्ण गुण होने के कारण लोग इसे पान के साथ खाते है।

औषधियो के अतिक्ति लौगं अनेक प्रकार के मसालो, विशेषकर गरम मसाले, मिठाईयोे, बेकरी उत्पादो, सास, अचार, मुरब्बा, टूथपेस्ट, मुखशोधको आदि मे प्रयोग किया जाता है। प्रतिरोधी और जीवाणुनाशी होने के कारण आचार मे परिरक्षक ( Preservative )का कार्य करता है। साबुन निर्माण मे भी इसका प्रयोग होता है। हिन्दू लोग अनेक धार्मिक कार्यो मे लौगं का प्रयोग करते है।
लौंग का रासायनिक संघटन इस प्रकार है:

लौंग के संगठन मे उसके उत्पाद क्षेत्र की जलवायु, उसके संसाधन और संचयन के तरीको के कारण अंतर हो सकता है। एक सामान्य विशलेषण से प्राप्त जानकारी इस प्रकार है- जलांश: 5.4ः; वाष्पशील तेल: 13ः ; प्रोटीन 6.0; वाष्पशील ईथर सार: 15.5 , कच्चा रेशा: 11ः%, काबोहाइड्रेट: 57.4ः , खनिज पदार्थ: 5.0% , हाइड्रोक्लारिक एसिड मे अविलेय भस्म: 0.24%, कैल्शियम: 0.7%, फांसफोरस: 0.10% , लौह: 0.10%, सोडियम: 0.25%, पोटैश्यिम: 1.2%, विटामिन ( मिलीग्राम / 100 ग्राम ): विटामिन बी1: 011% , विटामिन बी2: 0.04% , नियासिन: 1.5%, विटामिन सी: 80.6% , और विटामिन ए: 175 अंत यू, कैलोरीय मान ( खाद्य उर्जा ) 430 कैलोरी / 100ग्राम।

समूह द्वारा कत्थई रंग की मोटी (लाल परी), फूलदार लाैंग विक्रय की जाती है। समूह की महिलाये लौंग से तिनके आदि बीनकर साफ लाैंग तैयार करती है। इसके अतिरिक्त हमारे गरम मसाले, सब्जी मसाला, मीट मसाला, रायता मसाला, चाट मसाला, जलजीरा एंव पानीपूरी मसाला, भुजिया मसाला, कुछ अचारो एंव बरी आदि मे भी लौंग का प्रयोग होता है। 

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