कालीमिर्च

कालीमिर्च

कालीमिर्च भारत का अतिप्राचीन पादप है। संभवतः दक्षिण पश्चिम भारत की पहाड़िया इसका मूलस्थान है। इसे मसाले का राजा कहते है। इसी के कारण वास्कोडिगाामा ने पुर्तगाल से भारत तक समुद्री मार्ग की खोज की थी। प्राचीन काल से ही यह एक बहुमूल्य मसाला रहा है। उस समय इसका हिसाब दानो की गिनती ने रखा जाता था और एक बोरी काली मिर्च का मूल्य एक आदमी के जीवन के बराबर माना जाता था। इसे भारत का काला सोना भी कहते थे। भारत के इस काले सोने के लिए यूरोपीय उपनिवेशो में अनेक बार समुद्री-समर भी हुए।

यह पाइपर नाइग्रम नामक लता या झाड़ के अपरिपक्व मगर सुखाए हुए फल है। कालीमिर्च काले रंग की आधे सेमी0 व्यास की कुछ सुकड़ी हुई गोल फल होता है। रंग और आकार में इनमें न्यूनाधिक भिन्नता भी होती है। भारत में इसकी खेती केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक और पांडचेरी में होती है। इसके अतिरिक्त इंडोनेशिया, मलेशिया, श्रीलंका, थाईलैण्ड और ब्राजील आदि देशो में भी इसका उतपादन किया जाता है। सफेद कालीमिर्च इसी पादप से प्राप्त होता है। अन्तर मात्र फलो को काटने का होता है। काली कालीमिर्च अपरिपक्व अवस्था में पेड़ से काट लिया जाता है। जबकि सफेद काली मिर्च परिपक्व अवस्था में काटा जाता है।

विभिन्न नाम – संस्कृत – कृष्ण मरिचम, अंग्रेजी- ठसंबा च्पजजमत, बांग्ला, कालामोरिच, गुजराती- कालीमिरिच, कालामारी, कन्नड़- मकारे, मलयालम- कुरूमलुक, मराठी- मीरे, उड़िया- गोलमिरिच, उर्दू- स्याह मिर्च, तमिल- मिलगु।

गुण धर्म और उपयोग- आर्युवेद के मतानुसार कालीमिर्च उष्णवीर्य, खुष्क, पाचक, दीपक, ंपोषक, गुरूपाक, रूचिकारक, कृमिनाशक, कफ एंव वातनाशक है। क्षय, कृमि, नेत्र एंव ह्रदय रोग मे हितकारी है। यह मलेरिया, खंासी, कंप, उन्माद, बवासीर, दात दर्द आदि रोग मे लाभकारी है। यह ।दजपवगपकमदज होने के साथ-साथ टपजंउपद. । ए ब् , सेलेनियम एंव बीटा कैरोटीन जैसे पोषक तत्वो से युक्त है।

त्रिकुट मे कालीमिर्च को प्रथम स्थान प्राप्त है। कालीमिर्च, सोठ और छोटी पीपर त्रिकुट कहलाता है। त्रिकुट मे सौफ और कालानमक समभाग मिलाकर चूर्ण बनाये। इस चूर्ण को 5-5 ग्राम सुबह शाम गरम जल के साथ भोजन के पहले सेवन करने से पाचन शक्ति बढ़ती है। त्रिकुट के साथ सेधा नमक और भुना जीरा चूर्ण मिलाकर भोजनोपरान्त जल के साथ लेने से मंदाग्नि मे लाभ होता है।

त्रिकुट मे देशी गुड़ मिलाकर छोटी- छोटी बना ले। दिन भर मे 4-5 बार इस गोली को चूसने से सिर का भारीपन, जुकाम और कफविकार दूर होता है।

बवासीर दूर करने के लिए कालीमिर्च का चूर्ण 30 ग्रा0, सौफ का चूर्ण 15ग्रा0, मेथी चूर्ण 5 ग्रा0 और शहद 5 औस, सबको मिलाकर एक शीशी मे भरकर रख ले और 5 – 5 ग्रा0 प्रातः सायः लेने से लाभ होता है। जीरा का दोगुना कालीमिर्च और दोनो का आधा भाग तालमिश्री लेकर सबको चूर्ण बना ले और दिन मे तीन बार सादे जल के साथ लेने से भी बवासीर मे लाभ होेता है।

10ग्रा0 कालीमिर्च और छिलका निकाला 10 नग बादाम दोनो अच्छी तरह चबाकर खाने से प्रमेह रोग दूर होता है। इसके लिए बादाम को पानी मे रात्रि को भिगोदेना चाहिए और प्रातः उसका छिलका उतारकर बादाम को किसी पत्थर पर घिस कर पेस्ट जैसा बना लेना चाहिए और कालीमिर्च को सिल पर बारीक पीस कर उसमे मिला देना चाहिए। यह प्रयोग नित्य करने से धातु पुष्ट होती है। इसमे 5 दाना भीगा मुनक्का भी मिला देना चाहिए इससे पेट साफ रहता है। पूर्ण लाभ के लिए हमारे वेबसाइट के प्रथम भाग के ‘‘भोजन संबधी आवश्यक नियम‘‘ का पालन अवश्य करे।

यदि छोटे बच्चो के दातो मे कीड़ा लग गया है तो काली मिर्च और सेघा नमक का महीन पाउडर सरसो के तेल के साथ मिलाकर नित्य प्रति दातो पर मलने से कुछ दिन मे कीड़ा समाप्त हो जाता है। यह स्वानुभूत है। इसे आप टूथपेस्ट के स्थान पर नित्य प्रयोग कर सकते है। इससे आप के दात जीवन भर स्वस्थ्य बने रहेगे।

यूरोपवासी मांस आदि को सुरक्षित रखने के लिए लौंग के साथ इसका भी प्रयोग करते थे। इसके अतिरिक्त साँस, सूप, अचार, बेकरी, मिठाई एंव शराब आदि मे इसका प्रयोग होता है। इसके तेल को साबुन बनाने मे भी प्रयोग किया जाता है। प्राचीन मिस्रवासी शवो को सुरक्षित रखने के लिए उस पर इसका लेप करते थे।

कालीमिर्च पाउडर का प्रयोग सब्जियो मे, उबले हुए आलू एंव अण्डे आदि पर किया जाता है। नमकीन काजू मे भी इसका प्रयोग होता है।

जलांश: 8.7-14.1ः; कुल नाइट्रोजन: 1.55-2.60ः; अवाष्पशील ईथर निष्कर्ष में नाइट्रोजन: 2.70-4.22ः; वाष्पशील ईथर निष्कर्ष: 0.3-4.2ः; अवापशील ईथर निष्कर्ष: 3.9-11.5ः; अल्कोहल निष्कर्ष: 4.4-12.0ः; स्टार्च (एसिड जल-अपघटन से): 28.0-49.0ः; कच्चा रेशा: 8.7-18.0ः; कच्चा पिपेरन: 2.8-9.0ः; पिपेरन (स्पेक्ट्रोफोटोमापिकी से): 1.7-7.4ः; कुल भस्म: 3.9-5.7ः; एसिड अविलेय भस्म (रेत): 0.03-0.55ः।

हमारे समूह द्वारा कालीमिर्च के साबुत दानो का विक्रय किया जाता है। कालीमिर्च पाउडर का भी विक्रय होता है। इसके अतिरिक्त यह हमारे गरम मसाले, सब्जी मसाला, मीट मसाला, चाट मसाला, भुजिया मसाला एंव कुछ अचारो मे भी प्रयुक्त होता है।

नोट – पित्त प्रधान व्यक्ति के लिए अहितकर है।

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