अचार मसाला कलौंजी मसाला के समान ही होता हैं। कलौंजी मसाले की तुलना में यह कुछ मोटा पिसा रहता है। साथ ही इसमें पीली सरसों और अजवाइन भी मिला रहता हैं। कुछ लोग कलौंजी मसाले के स्थान पर भरावन के लिए अचार मसाले का प्रयोग करते हैं।अन्य अचार मसालों में पचफोङन आदि मसाले के साथ नमक, हल्दी और अमचुर आदि का मिश्रण भी रहता हैं। इस कारण से यह सस्ता भी रहता है।परन्तु हमारे आचार मसाले में इन सबका मिश्रण नहीं रहता हैं। क्योंकि जो सब्जी या फल खट्टे होते हैं , जैसे आम, अंबार, कमरख आदि। उनमें अमचुर की आवश्यकता नहीं पड़ती हैं। दूसरी बात किसी भी सब्जी या फल का अचार बनाने से पहले उसमें नमक मिलाकर उसका पानी निकाला जाता हैं। ताकि वह खराब न होने पाये। यदि हम अन्य अचार मसाला सब्जी या फल में मिलाते हैं तो पानी भली-भांति नहीं निकल पाता हैं। इसलिए हमारा…

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कलौंजी मसाला करैला,भिन्डी,परवल,बैंगन,शिमला मिर्च आदि सब्जियोें में भरा जाता है। यह मसाला हल्का भुना होता हैं। इसके लिए जिस सब्जी का कलौंजी आपको बनाना हो। उसे ताजा हरा लेकर साफ पानी से धुल लीजिए। अब चित्रानुसार सब्जी के बीच में लम्बाई की ओर से चाकू से एक तरफ काटिए। और उसे हल्के हाथ से दबाकर उसके भीतर का गूदा पतले चाकू से खुरचकर बाहर निकाल लीजिए। अब प्याज , लहसुन छीलकर बारीक काट लीजिए। इसे प्याज , लहसुन में कलौंजी मसाला , बारीक कटी हरी मिर्च, सब्जी के भीतर का निकाला गया गूदा, नमक, थोड़ा सरसों का तेल मिला दीजिए। कुछ लोग स्वादानुसार इस मिश्रण में अमचुर भी मिलाते है। और कुछ लोग तैयार कलौंजी पर ऊपर सें नींबू का रस या दही मिलाते हैं। मेरे विचार से अमचुर के स्थान पर नींबू का रस अधिक लाभकारी होता हैं। क्योंकि अमचुर त्रिदोषवर्धक होता हैं। जब कि नींबू रक्त में क्षारीयता…

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जलजीरा मसाले का प्रयोग ग्रीष्मकल में अधिक होता है। यह जलजीरा, मीठी शिकंजी, आम के पने का मसाला में भी प्रयुक्त होता है। यह पानीपूरी मसाला के समान ही होता हैं। इसमें लाल मिर्च पाउडर , अमचुर, टाटरी नहीं होता हैं। इसलिए यह पेट दर्द या पेट में वायु प्रकोप होने पर औषधि के रुप में भी प्रयोग किया जाता हैं। पेट दर्द आदि में इसे नींबू के रस के साथ जल में घोलकर पीने से तुरन्त लाभ होता हैं। इसके अतिरिक्त इसके अन्य प्रयोग भी हैं। मीठी शिकंजी बनाना – ताजे जल में जलजीरा मसाला , शक्कर , और नींबू का रस मिलाने से स्वादिष्ट शिकंजी बनती हैं। यह शिंकजी पेट के लिए बहुत लाभकारी होती हैं। इसका प्रयोग ग्रीष्म ऋतु में अवश्य करना चाहिए। यह शरबत शरीर को ताजगी और ताकत देता है। पतले दस्ते में भी इसके प्रयोग से लाभ होता है। यह लू से भी बचाता…

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पानीपूरी मसाले को पानी में घोलकर गोलगप्पें में भरकर खाया जाता हैं। बाजार में बनी बनायी फुल्की मिलती हैं या चिप्स के रुप में भी गोलगप्पे मिलते हैं, उसे मंगाकर तेल में छान लीजिए। पहले से सफेद या हरी मटर उबाल कर रख लीजिए। गोल गप्पे में ऊपर की ओर उंगली से छेद करके उसमे उबला हुआ मटर भरकर पानीपूरी के जल को उसमें भरकर समूचा खायें। यह बहुत स्वादिष्ट होता हैं। उबले हुए मटर में आप हरी धनिया की बारीक कटी पत्ती भी मिला सकते हैं। पानीपूरी में अलग-अलग स्वाद के लिए आप चाट मसाला या रायता मसाला को भी जल में घोलकर भी प्रयुक्त कर सकते हैं। कुछ लोग मीठी फुल्की पसन्द करते हैं। इसके लिए चाट मसाला ”र्शीषक” में मीठी चटनी बनाने की विधि के अनुसार चटनी बनाकर प्रयोग करना चाहिए।पानीपूरी मसाला में अमचुर, मिर्चा एवं नमक का मिश्रण विद्यमान हैं। परन्तु यदि आपको खट्टा कम लग…

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चाट खाने का शौक प्रायः सभी को होता है। बहुत ही स्वादिष्ट होने के कारण यह प्लेट और उंगली चाट-चाट कर खाया जाता है। सम्भवतः इसी कारण इसका नाम “चाट मसाला” पड़ा। चाट बनाने के लिए अनेक प्रकार की सब्जियों एवं अनाजों के साथ विभिन्न प्रकार के मसालों आदि की भी आवश्यकता पड़ती हैं। इसे सुलभ करने के लिए चाट मसाले को बनाया गया।हमारे समूह द्वारा निर्मित चाट मसाला भुना हुआ बहुत ही स्वादिष्ट होता हैं। चाट मसाले के अनेक प्रयोग है। जैसे मटर उबाल कर उसमें चाट मसाला मिला दीजिए। यदि आपको नमक मिर्च अधिक पसन्द है तो उसे अलग से मिला लीजियें। ऊपर से मूली का कद्दूकस किया हुआ लच्छा,हरी मटर और बारीक कटी हरी मिर्च से सजाकर सर्व कीजिए। इस चाट में आप दही या नींबू का रस भी मिला सकते हैं।  इसी प्रकार उबले आलू को छीलकर बारीक काटकर उसमें चाट मसाला मिलाकर दही और हरी…

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Raita

भारतीय भोजन में रायता बहुत प्राचीन काल से प्रयुक्त होता आ रहा हैं। रायता जठराग्नि को तीव्र करने वाला , पाचक और बलवर्धक होता हैं। रायता शुद्ध दूध की ताजी दही का होना चाहिए। बासी दही का रायता खट्टा और पित्तवर्धक होता हैं। रायता अनेक प्रकार के बनते हैं। जैसे बूंदी का रायता , लौकी का रायता, केले और मेवे आदि का रायता । यहाँ कुछ रायता बनाने की विधियाँ दी जा रही हैं- बूंदी का रायता – बूंदी का रायता बनाने के लिए घर में शुद्ध बेसन की बूंदी छान लें या बाजार से अच्छे मानक ( ठमेज ुनंसपजलद्ध की छनी हुई बूंदी खरीद लें। यदि घर पर बूंदी छाननी हैं तो बेसन को शहद जैसा गाढ़ा घोलकर आधा घंटा रख दें। तत्पश्चात् बेसन को हल्का फेंटकर कढा़ई में घी गर्म कर तेज आंच पर बूंदी छानें। हल्का सुनहरा रंग होने तक बूंदी तले और उसके बाद कढा़ई से…

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( पनीर मसाला, शाही पनीर मसाला, राजमा मसाला) भारत में मांसाहार का प्रयोग प्राचीनकाल से होता आ रहा हैं। अनेक प्राचीन ग्रन्थों में मांसाहार के प्रयोग का वर्णन मिलता हैं। हमारा मीट मसाला पनीर, शाही पनीर , राजमा या अन्य रसेदार सब्जियों में भी प्रयुक्त होता हैं। सब्जी बनाने की विधि के अनुसार ही मीट या पनीर आदि की भी सब्जी भी बनती हैं। यहाँ सब्जी मसाला के स्थान पर मीट मसाला प्रयुक्त होगा। घटक: हमारे मीट मसाले में हल्दी , धनियां ,मिर्चा ,जीरा ,बड़ी इलायची ,काली मिर्च ,लौंग, श्यामा जीरा,तज, छोटी इलायची , जायफल ,जावित्री, कोकिला, सौंठ ,पीपर आदि होते हैं। इन मसालों के गुण एवं विभिन्न प्रकार के उपयोग, उत्पत्ति स्थान ,वैज्ञानिक नाम ,रासायनिक संगठन आदि का वर्णन हमारे साबुत मसाले प्रकरण में किया गया हैं।

भारतीय भोजन प्रायःशाकाहारी होता हैं। जिसमें सब्जी का विषेष महत्व हैं। सब्जी प्रायः दो प्रकार की बनती हैं। प्रथम कन्द वाली सब्जी और द्वितीय हरी पत्तेदार सब्जी । कन्द वाली सब्जियों में आलू ,घुंइया ,बंडा,जिमीकन्द आदि आते हैं। यह सब्जी केवल प्याज ,लहसुन , जीरा और मिर्चे के साथ छोंककर सादी भी बनायी जाती हैं और मसालेदार भी बनती हैं। कन्द वाली सब्जी के साथ मटर ,गोभी ,बैंगन ,टमाटर ,सेम ,परवल आदि मिलाकर भी स्वादिष्ट सब्जी बनायी जाती हैं। हरे पत्तेदार सब्जियों में पालक ,सोयामेथी ,बथुआ ,चौरायी आदि आतें हैं। यह सब्जी अकेले भी बनती हैं और आलू के साथ भी मिलाकर भी बनती हैं। परन्तु यह सब्जी मसालेदार न होकर सादी ही अच्छी लगती हैं। हरे पत्तेदार सब्जियों में कन्द वाली सब्जियों की तुलना में पोषक तत्व अधिक होते हैं। इसके अतिरिक्त लौकी,तरोई, भिन्डी आदि की भी सब्जियाँ बनती हैं। यह भी हरी सब्जियों की कोटि में आते हैं…

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भोजन स्वादिष्ट बनाने के लिए यह आवश्यक है कि भोजन बनाने वाले का मन भोजन बनाने मे लगना चाहिए, तभी भोजन स्वादिष्ट बनता है। कोई भी खाद्य पदार्थ बनाने या भोजन परोसने से पहले साफ पानी से दोनो हाथ भली-भाँति धुल कर, साफ कपड़ से पोछ लेना चाहिए। एंव भोजन बनाने मे सदैव ताजे एंव स्वच्छ पानी का प्रयोग करना चाहिए। खुले रखे हुए पानी का प्रयोग नही करना चाहिए। दाल आदि बनाने से पहले उसे जल से भलीभाति धुलकर लगभग आंधे घंटे पहले पानी मे भिगोकर रख देना चाहिए। तत्पश्चात उसी जल म दाल आदि बनाना चाहिए। इससे ईधन एंव समय की बचत होती है। किसी भी अनाज या सब्जी आदि को उबालने के बाद उसके बचे हुए पानी को कभी नही फेकना चाहिए। उस पानी को आटा गूथने में प्रयोग करना चाहिए। याद रखिए भोजन के पोषक तत्व इसी पानी में रहते है। इन्ही तत्वो से भोजन स्वादिष्ट…

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