़यह मूलरूप से दक्षिण पूर्वी यूरोप और पश्चिमी एशिया का पौधा है, परन्तु अब इसकी खेती भारत, अर्जेंटीना, मिश्र और भूमध्य सागरीय देशो मे भी होती है। भारत मेथी के सबसे बड़े उत्पादक एंव निर्यातक देशो मे से एक है। लेग्युमिनोसी परिवार के इसव पादप का वानस्पतिक नाम ट्राईगोनेला फोनम- ग्रीकम लिन है। इसका बीज छोटा पीला रंग का होता है। जो मसाले और औषधि के रूप मे प्रयुक्त होता है। इसका स्वाद कड़ुआ परन्तु सुगंध युक्त होता है। इसके पत्तो की सब्जी बनती है।विभिन्न नाम- अग्रेंजी- फेन्युग्रीक; बांग्ला, गुजराती, मराठी, ओड़िया, पंजाबी, संस्कृत, उर्दू- मेथी; कन्नड़- मेथ्या; मलयालम- उलूवा, तेलुगु- मेथुलु। गुण धर्म एंव उपयोग- आयुर्वेद के मतानुसार मेथी रस मे कड़वी, उष्णवीर्य, कफनाशक, जठराग्निप्रदीपक, स्तनदुग्धवर्धक, स्तनपुष्टकारक एंव धातुपुष्टि कारक है। रात्रि को लगभग 10 ग्रा0 मेथी जल मे भिगोकर प्रातः सिल पर पीस कर उसका रस निकालकर पीने से शरीर पुष्ट होता है। नारी द्वारा सेवन करने से…

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जावित्री वास्तव मे जायफल के ऊपर की पंखुड़ी है। जायफल के पेड़ मे ंजब फल लगते है तब जायफल क ऊपर एक कठोर, पतला, गाढ़े कत्थई रंग का चमकदार सुन्दर आवरण चढ़ा रहता है। उसी आवरण के ऊपर सुनहरे पीले या नारंगी रंग का जालिका रूप पंखुड़ी रहती है, जिसे जावित्री कहते है। इस प्रकार जावित्री जायफल के पेड़ की ही वनस्पति है। इसका अलग से कोई वृक्ष नही होता है। जायफल का पेड़ सदाबहार, सुगन्धयुक्त होता है। यह नौ से बारह मीटर तक ऊॅचा होता है। कभी-कभी बीस से बाइस मीटर तक ऊॅचे वृक्ष भी पाये जाते है।जावित्री वस्तुतः मलक्का द्वीप का वृक्ष है। इस समय मलेशिया, इण्डोनेशिया, वेस्टइण्डीज एवं श्रीलंका जैसे ऊष्णकटिबन्धीय देशो में इसकी खेती होती है। भारत में केरल, तमिलनाडु एवं आसाम आदि प्रदेशो में इसकी खेती होती है। भारत में इसकी बहुत मॉग होने के कारण यह आया तभी की जाती है। सिंगापुर की जावित्री…

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लौंग मूल रूप से मलक्का द्वीप का पौधा है। वैसे तो ईसा से सौ वर्ष पूर्व मानव को लौंग की जानकारी थी। 266 ई0 पूर्व में चीनियो को इसका पता चला। परन्तु इसके मूल स्थान का तब पता चला जब सोलहवी सदी में पुर्तगालिया ने मरक्का द्वीप की खोज की। लौंग पूर्वी देशों का एक सबसे प्राचीन और बहुमूल्य मसाला है। तेरहवी शताब्दी में प्रथम बार लौंग का आयात यूरोप में हुआ। धीरे-धीरे इसका पौधा मारिशस, जान्जीबार आदि देशों में पहुँचा। अंग्रेजो के भारत आने से पहले लौंग श्रीलंका पहुँच चुका था। कहा जाता है कि भारत में लौंग का उत्पादन अंग्रेजो ने किया। परंतु मेरे विचार से भारत में लौंग का उत्पादन प्राचीन काल से होता आ रहा है क्योंकि संस्कृत के अनेक ग्रंथों में लौंग का वर्णन प्राप्त होता है। लौग के सबसे बड़े उत्पादक देशो में क्रमशः जंजीबार, मेडागास्कर और इण्डोनेशिया है। मलेशिया, श्रीलंका और हैटी मे…

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कालीमिर्च भारत का अतिप्राचीन पादप है। संभवतः दक्षिण पश्चिम भारत की पहाड़िया इसका मूलस्थान है। इसे मसाले का राजा कहते है। इसी के कारण वास्कोडिगाामा ने पुर्तगाल से भारत तक समुद्री मार्ग की खोज की थी। प्राचीन काल से ही यह एक बहुमूल्य मसाला रहा है। उस समय इसका हिसाब दानो की गिनती ने रखा जाता था और एक बोरी काली मिर्च का मूल्य एक आदमी के जीवन के बराबर माना जाता था। इसे भारत का काला सोना भी कहते थे। भारत के इस काले सोने के लिए यूरोपीय उपनिवेशो में अनेक बार समुद्री-समर भी हुए। यह पाइपर नाइग्रम नामक लता या झाड़ के अपरिपक्व मगर सुखाए हुए फल है। कालीमिर्च काले रंग की आधे सेमी0 व्यास की कुछ सुकड़ी हुई गोल फल होता है। रंग और आकार में इनमें न्यूनाधिक भिन्नता भी होती है। भारत में इसकी खेती केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक और पांडचेरी में होती है। इसके अतिरिक्त इंडोनेशिया,…

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यह मूलरूप से भारत का पौधा है। भारत द्वारा निर्यात किये जाने वाले मसालो मे कालीमिर्च के बाद छोटी इलायची का ही स्थान है। यह मसालो की रानी कही जाती है और विश्व के बहुमूल्य मसालो मे से एक है। भारत मे केरल राज्य मे इसकी सार्वधिक खेती होती है। इसके अतिरिक्त श्रीलंका, थाईलैण्ड, ग्वाटेमाला आदि देश भी इसके उत्पादनकर्ता है। लाओस, वियतनाम, कोस्टारिका, एलसल्वाडोर और तन्जानिया मे लघु स्तर पर इसकी खेती होती है। परन्तु अपनी विशेष सुगंध और स्वाद के कारण भारत की इलायची सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। इसके इसी गुण के कारण मध्यपूर्व देशो के आयातक इसे अन्य देशो की इलायची से श्रेष्ठ मानते है। छोटी इलायची की खेती का श्रेत्रफल भारत मे सर्वाधिक है और यह विशव के 90ः के बराबर है। केवल रंग के संबध मे यहां की इलायची ग्वाटेमाला की इलायची से निम्नस्तरीय है। परन्तु गुणो मे भारतीय इलायची आज भी सर्वश्रेष्ठ है।यह जिजिबेरेशी…

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यह मूलरूप से भारत का पौधा है। भारत द्वारा निर्यात किये जाने वाले मसालो मे कालीमिर्च के बाद छोटी इलायची का ही स्थान है। यह मसालो की रानी कही जाती है और विश्व के बहुमूल्य मसालो मे से एक है। भारत मे केरल राज्य मे इसकी सार्वधिक खेती होती है। इसके अतिरिक्त श्रीलंका, थाईलैण्ड, ग्वाटेमाला आदि देश भी इसके उत्पादनकर्ता है। लाओस, वियतनाम, कोस्टारिका, एलसल्वाडोर और तन्जानिया मे लघु स्तर पर इसकी खेती होती है। परन्तु अपनी विशेष सुगंध और स्वाद के कारण भारत की इलायची सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। इसके इसी गुण के कारण मध्यपूर्व देशो के आयातक इसे अन्य देशो की इलायची से श्रेष्ठ मानते है। छोटी इलायची की खेती का श्रेत्रफल भारत मे सर्वाधिक है और यह विशव के 90ः के बराबर है। केवल रंग के संबध मे यहां की इलायची ग्वाटेमाला की इलायची से निम्नस्तरीय है। परन्तु गुणो मे भारतीय इलायची आज भी सर्वश्रेष्ठ है।यह जिजिबेरेशी…

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भारत मे बड़ी इलायची का प्रयोग हजारो वर्षो से होता आ रहा है। बड़ी इलायची नेपाल, भूटान, सिक्किम, आसाम और बंगाल के दलदली एवं बड़े वृक्षो की छाया दार स्थान पर पैदा होती है। इसके बीज से कपूर जैसी सुगंध आती है। यह जिंजीबेरेसी परिवार के कुछ पौधे के सूखे संपुटिका फलो का नाम है। जिसका वानस्पतिक नाम अफ्रामोमम और अमोमम है। वर्ग भेद के अनुसार इसके अनेक वानस्पतिक नाम है। जैसे भारत में बड़ी इलायची का नाम अमोमम सबुलेटम रॉक्सबर्ग है। विभिन्न नाम – संस्कृतः बृहादेला, बंगला, पंजाबी और हिन्दीः में बड़ी इलायची, मलयालमः मेंपेरेलम तेलुगूः पेड्डमेलकी कहते है। गुणधर्म – एंव उपयोग – यह ऊष्णवीर्य, अग्निवर्धक, शुधावर्धक, पाचक एंव कफपित्तनाशक है। वह रक्तपित्त, चर्मरोग, श्वांस खांसी, प्यास, वमन, विषदोष, शिरोरोग एव दन्तरोग में लाभकारी है। यह हृदय एवं यकृत के लिए हितकारी है। Antioxident गुणो से युक्त होने के कारण यह कैसंर रोधी है। इसमे विटामिन सी, काबोहाइडे्ट,…

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जीरा मूलरूप से मिश्र, सीरिया, तुर्किस्तान एवं उससे लगे भू भाग का पौधा है। इसका पौधा छोटा होता है। इसके फल सुगंधित होते है जिन्हे बीज कहते है। यही जीरा कहलाता है। एशियाई देशो में जीरा बहुतायत से भोजन आदि में प्रयुक्त होता है। जीरा बहुत पुराना मसाला है। यह बाईबिल काल से प्रयुक्त होता आ रहा है। आजकल इसकी व्यवसायिक खेती ईरान, भारत, मोरक्को, चीन, दक्षिणी रूस, इण्डोनेशिया, जापान आदि देशो में की जाती है। ईरान जीरे का मुख्य निर्यातक देश है।इसका वानस्पतिक नाम क्यूमीनियम साईमिनमलिन है और यह अबेलीफेरी परिवार का सदस्य है।विभिन्न नाम- संस्कृतः जीरक, जीरा। हिन्दी, बंगला, पंजाबीःें जीरा या सफेद जीरा। कशमीरी: ज्यूर, गुजरातीः जीरू या जिल। तेलुगू: जीकक कहते है। गुणधर्म एंव उपयोग – जीरा ऊर्ष्णवीर्य , उत्तेजक, अग्निवर्धक, क्षुधावर्धक, पाचक, सुगंधित, अरूचिनाशक, अजीर्णनाशक, अमाशय एवं गर्भाशय शोधक, त्रिदोषनाशक, स्तभंक, विषनाशक रक्तपित्त एवं कृमिरोग में लाभकारी है। जीरा रक्ताल्पता, अनिद्रा, थायराईड, निम्नरक्तचाप, मधुमेह, पेटदर्द…

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सेंधा नमक पाकिस्तान के लाहौर नामक स्थान में स्थित एक पहाड़ी से प्राप्त होता हैं। यह ईरान में भी पाया जाता है। परंतु लाहौर का सेंधानमक ईरान के नमक की तुलना मे श्रेष्ठ होता है। यह हल्के लाल रंग की लालिमा लिए हुए होता है। जबकि ईरान का नमक पूर्णता सफेद होता है।समस्त लवणों में सैधवलवण ही प्रशस्त हैं। यह व्रत में खाया जाता हैं एवं आयुर्वेद की अनेक प्रकार औषधियों में प्रयुक्त होता हैं। स्वास्थ रक्षा के लिए एक सीमित मात्रा में नमक की नितान्त आवश्यकता होती हैं। क्योंकि नमक में कैल्शियम, फास्फोरस, पोटैशियम, मैग्नीशियम,क्लोरीन, सोडियम, सल्फर, आयरन, कॉपर, फ्लोरीन, सिलिकॉन, आयोडीन आदि धातुएँ पायी जाती हैं। कहा जाता है यदि कोई व्यक्ति एक वर्ष तक निरंतर किसी भी प्रकार का नमक नहीं खाता है तो उसका रक्त इतना शुद्ध हो जाता है कि यदि सांप भी उसे काट ले तो उस पर कोई असर नहीं होता। सच्चाई क्या…

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यह सांभर नमक, सुहागा, आँवला और पियाँवासा के पत्तों के मिश्रण से बनाया जाता हैं। आर्युवेद के मतानुसार काला नमक पाचक, हृदय उत्तेजक, दस्तावर,वायु एवं कृमिनाशक हैं। यह उदरशूल एवं हृदय सम्बन्धी रोगो में लाभकारी हैं। यह हींगाष्टक चूर्ण का महत्त्वपूर्ण घटक हैं एवं आयुर्वेदीय औषधियों में बहुधा प्रयुक्त होता हैं। वायु प्रधान रोगाों में इसे गर्म जल के साथ एवं पित्तप्रधान रोगों में इसे देशी घी के साथ देते हैं। उदर रोगों में यह घृतकुमारी , अजवाइन या हींग के साथ दिया जाता हैं। काला नमक का प्रयोग रक्तविकार, सूजन, जलोदर,हृदय या यकृतजन्य शोथ में नहीं करना चाहिए। हमारे समूह द्वारा कालानमक का पथरीला भाग निकालकर , धुलकर , सुखाकर पिसाया जाता हैं। इसके पाउडर का विक्रय होता है। इसके अतिरिक्त यह हमारे रायता मसाला , चाट मसाला , जलजीरा और पानीपूरी मसाला एवं कुछ अचारों में भी प्रयुक्त होता हैं।

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