मंगरैल का उपयोग सदियों पूर्व से एशियाई और अफ्रीकी देशों में होता आया है।आयुर्वेद और प्राचीन ईसाई ग्रंथों में इसका वर्णन प्राप्त होता है। यह भूमध्य सागर के पूर्वी तटीय देशों, अफ्रीका , पश्चिमी एशिया और भारत में पैदा होता है। यह झाड़ी रूप में होता है। मंगरेल त्रिकोण आकार का काला रंग का छोटा बीज होता है जो एक गोलाकार आवरण में संग्रहित रहता है। मंगरैल आकार और रंग में प्याज के बीज और काले तिल के समान होते हैं।परंतु यह तीनों अलग-अलग प्रकार की वनस्पतियां हैं।मंगरेल को कलोंजी भी कहते हैं। यह रमुनकुलेशी कुल का पौधा है जिसक वानस्पतिक नाम मि जला सेदाइया है। गुणधर्म और उपयोग- आयुर्वेद के मतानुसार मंगरैल स्वाद में कसैला और चिकना है। इस में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, पोटेशियम, सोडियम, आयरन और जिंक आदि अनेक तत्व मिलते हैं। यह स्मरणशक्तिवर्धक, दुग्धवर्धक, मूूत्रवर्धक,सिरदर्द, नेत्र रोग, चर्मरोग और बालों के लिए लाभकारी है।इस्लाम मतानुयायी इसे मौत…

Read more

यह विश्व के अनेक देशों के जंगलों में प्राकृतिक रूप से स्वयंभू वनस्पति है।इसकी कृषि नहीं होती है।वास्तव में यह एक प्रकार की काई है। इसे Black Stone Flower या पत्थर फूल भी कहते हैं।भारत में सदियों से यह खाद्य पदार्थों में एवं औषधियों में सेवन किया जाता है।इसे सब्जी या मीट में मसाले के साथ छोका जाता है। छड़ीले को कुछ लोग पाउडर के रूप में प्रयोग करते हैं, तो कुछ लोग इसे कैची से बारीक काटकर साबुत प्रयोग करते हैं।बारीक कटा जब दांत के नीचे पड़ता है,तब यह बहुत स्वादिष्ट लगता है। दक्षिण भारत में इसका प्रयोग अधिक होता है। आयुर्वेद के मतानुसार छड़ीला गरम, बाल एवं त्वचा के लिए लाभकारी है। यह यकृत, गुर्दा, अल्सर एवं डिप्रेशन में भी लाभप्रद है। यह दर्द विनाशक का भी कार्य करता है।परंतु गर्भावस्था के दौरान इसका सेवन नहीं करना चाहिए।हमारे समूह द्वारा छरीला का फूल साबुत विक्रय होता है।इसके अतिरिक्त…

Read more

यह एक उष्णकटिबंधीय वृक्ष है, जिसका वानस्पतिक नाम सीना मोनम तमाली है। यह लारसी परिवार का सदस्य है। इसके वृक्ष 20 से 30 फुट तक ऊंचे होते हैं और तने 5 फुट तक मोटे होते हैं। यह हिमालय पर 8000 फुट की ऊंचाई तक पाए जाते हैं ।खासी जयंतिया की पहाड़ियों और पूर्वी बंगाल में यह वृक्ष बहुतायत से पाए जाते हैं। है। इसके हर अंग से खुशबू आती है।आसाम का तेजपात विश्व प्रसिद्ध है। गुणधर्म और उपयोग – आयुर्वेद के मतानुसार पत्रज त्रिदोष नाशक, पाचक, ऊषण, सुगंधित, सिर दर्द, हड्डियों का दर्द, सर्दी जुखाम मधुमेह, बांझपन और अम्लता में लाभकारी है। यह हृदय,दाँत, त्वचा, नेत्र और बालों के लिए भी लाभकारी है। तेजपात गुर्दे के संक्रमण को दूर करता है साथ ही गुर्दे की पथरी को भी गलाता है। यह स्तनवर्धक, स्मरणशक्तिवर्धक और तनाव को दूर करने में सहायक होता है। तेजपात में एंटीऑक्सीडेंट और anti-inflammatory गुण होने के…

Read more

यह मूल रूप से भूमध्यसागरीय पादप है, जो आज पूरे विश्व में फैला हुआ है। यह मेथा वंश का बारहमासी पौधा है, जिसकी लगभग 40 प्रजातियां पाई जाती हैं। यह घरों में लान और गमलों में भी उगाया जाता है। पुदीना अपने स्वाद और सुगंध के लिए विश्व प्रसिद्ध है। इसकी गंध इसके तेलीय तत्व के कारण होती है, जिससे पिपरमिंट बनती है। विभिन्न नाम संस्कृत-रोतीसे, हिंदी,बंगाली, मराठी-पुदीना, अंग्रेजी-Mint,गुजराती-फुददिनों, पंजाबी-पोडिना, अरबी-फुजनज। गुणधर्म और उपयोग- आयुर्वेद के मतानुसार पुदीना शीतल, उद्दीपक, पाचक, स्मरणशक्तिवर्धक और मुखदुर्गंधनाशक है। यह कफवात नाशक भी है। यह सिरदर्द, खांसी, जुखाम दमा, ज्वर, हृदय रोग, हिचकी, जी मचलाना, उल्टी, हैजा, यकृत रोग, तिल्ली, पीलिया, गुर्दा, निम्न रक्तचाप, गठिया आदि रोगों में लाभकारी है।यह महिलाओं के मासिक धर्म को जारी करने और वजन घटाने में भी सहायक है। पुदीने में विटामिन ए,बी,सी और के पाया जाता है,साथ ही यह पोटेशियम और कैल्शियम से भी युक्त है। बुखार में…

Read more

यह एनाकारडीएसी परिवार का सदस्य है।जिसका वानस्पतिक नाम मैंगिफेरा इंडिका लिन् है। यह कच्चे आम का होता है,जिसका छिलका छीलकर उसकी फांको को सुखाकर,पीसकर चूर्ण बनाया जाता है। यही आम्रचूर्ण या अमचूर कहलाता है।इसे भोजन में खट्टापन लाने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसका उत्तरी भारत में अधिक प्रयोग होता है।आम भारत का सर्वाधिक लोकप्रिय फल है। विभिन्न नाम-बांग्ला: काचुकाचा आम। गुजराती: केरी। मलयालम: मनगा। मराठी: अंबा। कन्नड़: मवीना काई। ओड़िया:कांचाअंबू। हिंदी, पंजाबी,उर्दू: कच्चा आम,अमचूर।तमिल: मंगे,तेलुगू:ममीडी काई। गुणधर्म एवं उपयोग-आयुर्वेद के मतानुसार अमचूर अग्नि वर्धक मलभेदक, पित्तवर्धक, वायु और कफनाशक है। यह नेत्र रोग, पेटरोग, कृमिरोग और घाव भरने में लाभकारी है। कच्चा आम और उसकाा छिलका दोनों स्तंभक है। इसका उपयोग चटनी,सूप, अचार, सब्जी, मुखभावन चूर्ण आ दि में होता है। हमारे उन आचारों में जो स्वभावतः खट्टे नहीं होते हैं,उन्हें खट्टा करने के लिए अमचूर मिलाया जाता है। जैसे कटहल,लाल भरवा मिर्चा, हरी मिर्च,लहसुन, कुचला,करेला, मिक्स वेज…

Read more

भुजिया मसाला वास्तव में गरम मसाले का ही एक रूप है। गरम मसाले में धनिया नहीं मिला रहता है, जबकि भुजिया मसाले में धनिया भी मिला रहता है। साथ ही यह भुना हुआ भी रहता है,इसलिए इसे भुजिया मसाला कहते हैं। चूकी आलू झंलकारते समय इसे भी आलू के साथ झलकार जाता है, इसलिए इसे झलकारा मसाला भी कहते हैं। इसे व्रत में विशेष रूप से खाया जाता है। भुजिया मसाले को उबले हुए आलू में हरी धनिया की पत्ती के साथ मिलाकर खाने से यह बहुत स्वादिष्ट लगता है। इसमें आप सेंधा नमक भी मिला सकते हैं।आलू छौकते समय भी इसका प्रयोग होता है। व्रत में साबूदाने या कूटू की दलिया की खिचड़ी में भी इसे खाया जाता है। इसके अतिरिक्त यह चाट, आलू भरे पराठे और समोसे में भी प्रयुक्त होता है। प्रयुक्त सामग्री-जीरा, छोटी इलायची, लोग, पीपर,धनिया। र्स्

खसखस से मानव लगभग 3000 वर्षो से परिचित है।इसकी कृषि मध्य यूरोपीय देश, ऑस्ट्रेलिया, तुर्की और भारत मे होती है। भारत मे इसकी खेती पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान एंव मध्यप्रदेश मे होती है। यह तिलहन जाति का है। इसके बीजो को पोस्ता या खसखस कहते हैं। पोस्ता दो प्रकार का होता है। पहला नीला खसखस ​​और दूसरा श्वेत या सफेद खसखस। नीला खसखस ​​यूरोपीय देशो मे होता है जो बेकरी और मिठाई मे इस्तेमाल होता है। जबकि सफेद पोस्ता एशियाई देशो और भारत मे पैदा होता है। इसका प्रयोग औषधियो एंव मसालो मे होता है। कच्चे पोस्ते मे मारफीन नामक तत्व पाया जाता है,जो दर्द निवारक का कार्य करता है। लेकिन इसका अधिक सेवन करने से यह नशे की आदत डाल देता है। जबकि पके हुए बीजो मे कोई नशा नहीं होता है। विभिन्न नाम – संस्कृत- खस। बांग्ला- कसकस, पोस्टो, गसागसालू। गुजराती- खशखश। मलयालम- कशकश। तमिल- गसगस। उर्दू- खशखश…

Read more

Kabab Chini

यह एक परजीवी झाड़ी है जो जावा सुमात्रा, मलाया एंव भारत के तटीय वनो मे पायी जाती है। इसमे श्वेत पुष्प होते है और बीज कालीमिर्च के समान श्यामवर्ण के गोल पतली दण्डीदार होते है। यही बीज कबाबचीनी कहलाता है। विभिन्न नाम – सुगंधि मरिचम, हिन्दी- शीतल चीनी, उर्दू- कबाब चीनी। गुर्ण धर्म एंव उपयोग – आयुर्वेद के मतानुसार शीतलचीनी स्वाद मे तीखी और चरपरी है। यह गर्म, कामोत्तेजक, कफवातनाशक, मू़त्रकारक, वीर्यदोष नाशक, मन एंव मष्तिक को प्रसन्न करने वाली, ह्रदय, नेत्र, सिरदर्द, श्वेतप्रदर, जिगर, तीली, उनमाद एंव मोतियाबिंद रोग मे लाभकारी है। यह पेट के रोग, मूत्राशय एंव गर्भाशय के रोग मे भी लाभकारी है। इसका तेल लिग की नसो की दुर्बलता को दूर करने वाला होता है। यह एंव गुणो से युक्त होता है। सूखी खांसी मे इसके चूर्ण के साथ लेते है। गले के दर्द एंव सूजन मे इसे सेधा नमक के साथ साबुत चूसने से भी…

Read more

यह अवेलीफेरी परिवार का एक अर्द्धवार्षिक पौधा है। जिसका वानस्पतिक नाम कैरन कार्बाेलिन है। यह मूल रूप से उत्तरी और मध्य यूरोप का पौधा है। अमेरिका मे भी इसकी खेती होती है। भारत मे यह हिमालय के उत्तरी क्षेत्र मे जंगली पादप के रूप मे उगता है। मैदानी क्षेत्रो मे जाड़े के दिनो मे इसकी कृषि होती है। यह मुश्किल से 5 – 6 फुट उचा पादप है।विभिन्न नाम – संस्कृतः सुषवी, उपकुचिका। बंाग्लाः जीरा, कन्नड़ः शिमे जीरिगे, मराठीः विलायती जीरा, कटुजीरा। तेलुगुः सिमा जीरकै, मलयालमः शिमा जीरकम। पंजाबीः स्याह जीरा। अँग्रेजी -(Black Cumin.) रासायनिक संघटन –जलांश: 4.4%; प्रोटीन: 7.5%; वसा: 8.2%; कच्चा रेशा: 20.00%य कार्बोहाइड्रेट: 60.1%; कुल भस्म: 3.1%; कैल्शियम 1.0%; लौह: 0.09%; फास्फोरस:0.11%; सोडियम: 0.02%; पोटेशियम: 1. 9%; ; विटामिन ए:580, कैलोरी/ 100ग्रा0: 460। गुर्ण धर्म एंव उपयोग –आयुर्वेद के मतानुसार कालाजीरा क्षुधावर्धक, पाचक, रक्तशोधक, वातनाशक, कृमि एंव चर्मरोग नाशक है। यह कब्ज, मूत्ररोग एंव गर्भाशय रोग मे…

Read more

DalChini

दालचीनी अथवा दार चीनी वास्तव मे अरबी शब्द दार- अल- चीनी से आया है जिसका अर्थ है चीन की लकड़ी । चीन मे इसका उत्पादन और व्यापार प्राचीन काल से होता आ रहा है। कुछ अभिलेखो से ज्ञात होता है कि मिस्रवासी ईसा से 2000 वर्ष पूर्व इससे परिचित थे। प्राचीन काल से ही चीन, श्री लंका, इडोनेशिया और भारत इसके उत्पादक ओर निर्यातक रहे है। श्री लंका की दालचीनी गुणो मे सर्वोत्तम होती है। यह लारिसे परिवार का सदस्य है जिसका वानस्पतिक नाम सिनेमोमम जिलेइनिकम ब्लूम है। विभिन्न नाम- सस्कृत- दारूशिला, दारूसिता, तमालपत्रम , बाग्ला , गुजराती, मराठी, ओड़िया- दालचीनी, मलयालम- लवंगपत्ती, अग्रेजी -सिनेमोमम।महाराष्टृ और गुजरात मे इसे तज भी कहते है। रासायनिक संघटन –जलांश: 9.8%; प्रोटीन: 4.1%; वसा: 2.2%; कच्चा रेशा: 20.00%; कार्बोहाइड्रेट: 60.1%; कुल भस्म: 3.1%; कैल्शियम 1.5%; लौह: 0.22%; फास्फोरस:0.3%; सोडियम: 0.01%; पोटेशियम: 0. 5%; ; विटामिन ए:176, कैलोरी/ 100ग्रा0: 355। गुण धर्म एंव उपयोग- आयुर्वेद…

Read more

10/39