मिक्स वेज अचार भारत और उसके पड़ोसी देशों में जाड़े में बनाया जाता है।इसमें आम, नींबू, हरी मिर्च,गाजर, गोभी, हरी मटर,अदरक और सेम आदि पढ़ते हैं।यह बहुत ही स्वादिष्ट होता है।इसे अन्य अचारों की तुलना में अधिक पसंद किया जाता है,क्योंकि इसमें एक ही अचार में अनेक अचारों का स्वाद मिल जाता है। समूह द्वारा मिक्स वेज अचार तैयार किया जाता है,जिसमें उपर्युक्त सब्जियों के अतिरिक्त हल्दी, जीरा, सोंठ, छरीला,मिर्चा,नमक,आमचूर,तेल आदि रहते हैं। विशेष-अचार में सरसों का तेल, नमक, और मसाले जैसे प्राकृतिक परिरक्षको(Natural Preservative) का प्रयोग हुआ है और यह धूप में पके हैं।आचार में सल्फर डाइऑक्साइड, बेंजोइक एसिड या सोडियम बेंजोएट जैसे अप्राकृतिक परिरक्षको का प्रयोग बिल्कुल नहीं हुआ है। 9335627624. 6387601254

समूह द्वारा आंवले का मुरब्बा बनाया जाता है। आवले को कांटे से गोद कर चूने के पानी में भिगोकर(चूने के वजन का 32 गुना पानी) 24 घंटे रख दिया जाता है। दूसरे दिन उसे जल से भली-भांति धुलकर उबाला है। तत्पश्चात इसे चीनी की चासनी में पकाया जाता है।इस प्रकार मुरब्बा तैयार होता है।यह ठंडा होता है और ग्रीष्मऋतु में अधिक सेवन किया जाता है। हमारे मुरब्बे में साइट्रिक एसिड का प्रयोग नहीं होता है।

लहसुनहट के अचार में हरा लहसुन, हरी धनिया, अदरक और हरा मिर्च रहता है। इसमें मसाला नहीं रहता है। केवल अमचूर, नमक और सरसों का तेल ही रहता है। यह बसंत ऋतु (March) में तैयार होता है, क्योंकि उसी समय हरा लहसुन मिलता है।यह बहुत स्वादिष्ट और तेज होता है। समूह द्वारा लहसुनहट का अचार तैयार किया जाता है। दूसरा अन्य मौसम में सूखा लहसुन, अदरक और हरी मिर्च का सेमी पेस्ट बनाकर अचार तैयार किया जाता है। जो कुचला कहलाता है। इसमें भी अमचूर, नमक और सरसों का तेल रहता है। खड़े लहसुन एवं लहसुनहट का अचार सीमित मात्रा में ही तैयार किया जाता है। क्योंकि लहसुन का अचार जितना पुराना होता जाता है उसमें एक अलग प्रकार की गध आने लगती है और उसका स्वाद ही बिगड़ जाता है। इसलिए लहसुन और लहसुनहट(कुचला) का अचार बराबर तैयार होता रहता है ताकि उसका स्वाद बना रहे। विशेष-अचार में सरसों…

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यह लिसिएसी परिवार का सदस्य है। जिसका वानस्पतिक नाम सेटाइयमलिन्न है। इसे संस्कृत में लशुनम और अंग्रेजी में गार्लिक कहते हैं। आयुर्वेद के मतानुसार लहसुन तीक्ष्ण,उत्तेजक, गुरु, स्निग्ध,बल,शुक्र और मेघावर्धक है।यह रूचि,अजीर्णअग्निमांध,वात्श्लेष्मा रोग, गुल्म, शोथ,बवासीर, मूत्ररोग, प्रमेह,, कष्टार्तव, बांझपन, रक्त विकार कुष्ठ, घेंघा, खांसी, ज्वर,यक्ष्मा,बहरापन, गठिया आदि रोगों में उपयोगी, टूटी हुई हड्डियों को जोड़ने वाला, घाव भरने वाला, पौष्टिक, रसायन एवं रक्तवर्धक भी है।यह पशुओं में होने वाले अर्बुद नामक रोग में भी हितकारी है।यह कोलेस्ट्रॉल को कम करने वाला और एंटीसेप्टिक भी है।लहसुन में डायलाइट एवं डाईसल्फाइड नामक तत्व पाए जाते हैं,जो नाना प्रकार के रोगों को नष्ट करने में सहायक होते हैं। कुछ अति धार्मिक प्रकृति के हिंदू लोग लहसुन का प्रयोग नहीं करते हैं क्योंकि शास्त्रों में इसे राक्षसों के शरीर से निकला हुआ कहा गया है। साथ ही इसे खाने से मुंह से दुर्गंध भी आती है।परंतु मेरे विचार से एक दुर्गुण के रहते हुए…

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यह Eupharbiaceae वर्ग का पेड़ है , जिसे संस्कृत में अमलकम या धात्री कहते हैं। आंग्ल-भाषा में इसे Goose Berry कहते हैं।आयुर्वेद के मतानुसार आंवला कफ-पित्त नाशक और पौष्टिक है। आवला रसायन है.रसायन वह होता है , जो वृद्धावस्था को रोके और शरीर को पुष्ट करें। आंवले में विटामिन सी बहुतायत मात्रा में होता है। आंवला चयवनप्राश का मुख्य घटक है। आंवले के रस में शहद मिलाकर चाटने से शरीर पुष्ट होता है।आंवले के एक औंस रस में एक चुटकी हल्दी का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से प्रमेह में लाभ होता। आंवले के रस में पीपल का चूर्ण मिलाकर चाटने से श्वास रोग में लाभ होता है। बीज निकालें आंवले का चूर्ण 5 ग्राम,100 ग्राम दूध में मिलाकर पीने से अम्ल पित्त में लाभ होता। समूह द्वारा आंवले को उबालकर अचार बनाया जाता है। यह शीत ऋतु में बनता है।शीत ऋतु में यह खाने में बहुत रुचिकर लगता है एवं…

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यह Salanaceae वर्ग का पौधा है।इसे संस्कृत में ग्रूही और अंग्रेजी में Green chilli कहते हैं। वैज्ञानिक विवेचन के अनुसार हरी मिर्च में विटामिन ए, के, सी, कापर, पोटेशियम, मैग्निशियम, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और आयरन पाया जाता है। इसमें Beta-carotene भी पाया जाता है। इसकारण हरीमिर्च नेत्र रोग में लाभकारी है। यह श्वासरोग, रक्तचाप, मधुमेह, हृदयरोग और त्वचा संबंधी रोग जैसे दाद,खुजली को ठीक करता है।फेफड़े एवं प्रोस्टेट कैंसर में भी यह लाभकारी है। हरी मिर्च एंटीऑक्सीडेंट एवं एंटीबैक्टीरियल भी है। इस कारण यह कैंसर एवं संक्रमण रोग से हमारी रक्षा करता है। यह कोलेस्ट्रोल को कम करता है।विटामिन सी से युक्त होने के कारण घाव भरने के साथ-साथ रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है। इसमें कैलोरी बहुत कम पाई जाती है।इसलिए मोटापा घटाने में भी यह सहायक है। हरीमिर्च में एंडोर्फिन नामक हार्मोन पाया जाता है। एंडोर्फिन का स्राव व्यक्ति को प्रशन्न रखता है। यह मस्तिष्क से स्रावित होता…

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करेला एक सर्व सुलभ वनस्पति है।इसकी सब्जी, अचार आदि बनते हैं।साथ ही कई प्रकार की औषधियों में भी यह बहुत उपयोगी है। यह Cucurbitaceae परिवार का पौधा है। करेले को संस्कृत में कारवल्ली और आंग्ल भाषा मेंBitter Gourd कहते हैं। आयुर्वेद के मतानुसार करेला अग्निवर्धक, मलभेदक, ऊँषणवीर्य, ​​अरुचि और शुक्रनाशक है। कफ, पित्त, वायु, कामला,कृमि और रक्तदोष नाशक है। मधुमेह मेंँ करेला लाभकारी होने के कारण, मधुमेह के रोगी इसका अचार अधिक पसंद करते हैं। समूह द्वारा दो प्रकार से करेले का अचार तैयार किया जाता है। प्रथम प्रकार में करेले के छोटे-छोटे टुकड़े करके अचार बनता है और दूसरा कलौंजी के समान भरवा अचार बनता है। इसमें करेले को बीच से चीर कर उसके भीतर का गूदा निकालकर उसमें नमक लगाकर पानी छोड़ने के लिए दो दिन रखा जाता है। दो दिन बाद वह धूप में खूब सुखाया जाता है। सूखने के बाद उसके भीतर आम का लच्छा भरा…

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यह सोलेनेसी परिवार का सदस्य है।जिसका वानस्पतिक नाम कैप्सिकम फ्रुटसेंस लिन है। इसे हिंदी,उर्दू और पंजाबी भाषा में लाल मिर्च कहते हैं।अंग्रेजी में इसे चिली (chilli)कहते हैं। आयुर्वेद के मतानुसार लाल मिर्चा अग्निवर्धक, पित्तवर्धक, दाहजनक एवं अरुचि, कफ, क्लेद नाशक है।यह अजीर्ण, हैजा और व्रण रोगों में लाभकारी है। इसका प्रयोग सीमित मात्रा में करना चाहिए। पित्त प्रधान व्यक्तियों को इसका सेवन कदापि नहीं करना चाहिए। भारत में लाल भरवा मिर्च का अचार बहुत पसंद किया जाता है। इसका अचार बनाने के लिए पहले मिर्च को पानी से धुल कर सांफ कपड़े से पोंछ कर धूप में सुखाया जाता है। तत्पश्चात उसके डंठल को काटकर उसके भीतर का बीज निकाल कर तैयार मसाले में मिलाकर मिर्ची में भरा जाता है। मिर्ची में मसाला भरने के बाद भी कम से कम दो दिन धूप दिखाना चाहिए। तत्पश्चात इसे जार में भरकर ऊपर से सरसों का तेल(हल्का गर्म कर ठंडा करके)डाला जाता…

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कटहल Moraceae वर्ग का वृक्ष है। संस्कृत में इसे पनसम, हिंदी में फरस और अंग्रेजी में Jack Fruit कहते हैं। आयुर्वेद के मतानुसार कटहल रुचि, बल, कफ और मेंद को बढ़ाने वाला,गुरुपाक और दाहजनक है। इसका कई औषधीय और खाद्य पदार्थों में प्रयोग होता है। समूह द्वारा कटहल का अचार बनाने के लिए पहले कटहल को छीलकर उसके गूदे को पानी में उबालकर धूप में सुखाया जाता है। तत्पश्चात उसमें मसाला,अमचूर और नमक आदि मिलाकर तेल डाल कर कई दिनों तक धूप में पकाया जाता है। हमारे किसी भी अचार में सोडियम बेंजोएट,सल्फर डाइऑक्साइड या बेंजोइक एसिड जैसे रासायनिक परिरक्षको (Preservative) का प्रयोग नहीं होता है। केवल नमक,मसाले और सरसों के तेल जैसे प्राकृतिक परिरक्षकों का ही प्रयोग होता है। सामग्री- कटहल, अचार मसाला, हल्दी, मिर्ची, नमक, अमचूर और सरसों का तेल आदि।

आम Anaacardiaceae वर्ग का पौधा है। जिसका वानस्पतिक नाम मैगिफेरा इंडिका लिन है। आम को संस्कृत में आम्रफलम् और हिंदी में आम कहते हैं।अंग्रेजी में इसे Mango कहते हैं।आम के वृक्ष समस्त भारतवर्ष में पाए जाते हैं। कच्चे आम के अचार बनते हैं, जबकि पके आम फल के रूप में खाये जाते हैं। दोनों ही बड़े चाव से खाए जाते हैं। आयुर्वेद के मतानुसार कच्चा आम अग्निवर्धक, मलरोधक, त्रिदोषवर्धक, कंठ और व्रण रोग मे हितकारी है। कच्चेआम का सेवन शरीर में पानी की कमी नहीं होने देता है एवं यह लू (भारत और उसके आसपास के देशों में ग्रीष्म ऋतु में चलने वाली गर्म हवा) से बचाता है।कच्चे आम में प्रोटीन,विटामिन ए,सी,ई कैल्शियम, मैग्नीशियम, फास्फोरस, ओमेगा 3 एवं फाइबर पाया जाता है। यह Antioxidant से भरपूर होता है। आम के अनेक प्रकार के अचार बनते हैं,जैसे आम का तेल वाला अचार,आम का भरवा अचार,आम का हींग का अचार एवं मीठा…

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