विश्व की जनसंख्या का लगभग एक तिहाई भाग चावल खाकर ही जीता है। भारत में चावल खाने वाले सर्वाधिक हैं। चावल धान से निकलते हैं। प्राचीन काल में केरल में 9 प्रकार के धान पैदा होते थे। कहते हैं कि दुनिया में 3000 प्रकार के धान की कृषि होती है। चावलो में बासमती, काला नमक और कनकजीर आदि भारत के विख्यात चावल है। आयुर्वेद के मतानुसार यह शीतवीर्य, लघुपाक , स्निग्ध, रुचि, बल, कफ, शुक्र और पुष्टि बढ़ाने वाला होता है।] चावल स्वर साफ करने वाला, पित्तनाशक किंतु किंचित वायुवर्धक भी है। लेकिन यह सब गुण ढेकी या हाथ से कुटे चावल में ही होता है, मिल के चावल में नहीं। समूह द्वारा साबुत और सांफ चावल का आटा पिसाया जाता है । जिसके कई प्रकार के खाद्य पदार्थ बनते हैं, जैसे फरा, पापड़ कचरी, पूरीआदि।

समूह द्वारा कुटु ( छिलका रहित ) का आटा तैयार किया जाता है। यह भी व्रत मे खाया जाता है। इसका हलुवा स्वादिष्ट नहीं बनता है। इसकी पूड़ी, पकौड़ी आदि अच्छी बनती है। यह सामान्य ठण्डे पानी से साना जाता है।

सिंघाड़ा फलवर्ग और श्रृंगाटकादि कुल ( Onagraceae) का एक सर्वसुलभ फल है, जो कि प्रायः तालाब, पोखरो आदि मे उगाया जाता है। इसकी बेले पानी सतह पर तैरती रहती है तथा इसकी जड़े पानी के अन्दर झूलती रहती है। परिपक्व होने पर बेलों पर कांटायुक्त त्रिकोणाकार फल निकलता हैं,जो सिंघाड़ा कहलाता हैं। कच्चा होने पर सिंघाड़ा हरे रंग का होता है परंतु जैसे-जैसे पकता जाता है इसके रंग में कालिमि आ जाती है।इसका छिलका छीलने पर भीतर सफेद रंग की ठोस गिरी निकलती है जो खाने में अत्यंत स्वादिष्ट होती है।इसे लोग प्राय कच्चा ही खाते हैं,परंतु कुछ लोग उबाल कर भी खाते हैं। सिंघाड़े की गिरी को सुखाकर उसका पाउडर बनाया जाता है, जिससे नाना प्रकार के व्यंजन बनते हैं। विभिन्न नाम -संस्कृत– श्रृंगाटक(चूंकी इसमें सीग के समान दो कांटे रहते हैं, इसलिए इसे श्रृंगाटक कहते हैं), जलफल, त्रिकोणफल, जलकण्टक। हिन्दी, तमिल और उर्दू– सिघाड़ा। गुजराती– सिंगोड़ा। कशमीर– गौनरी।…

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घुंवास उर्द की घोई ( छिलका रहित दाल ) का दरबरा आटा होता है। इसकी कचौड़ी, फरा, दहीबड़ा और बरी बनती है। चने की दाल के समान इसके बने व्यंजन भी बहुत स्वादिष्ट होते है। आयुर्वेद के मतानुसार उर्द शीतवीर्य, स्निग्ध और भारी है। यह बल, शुक्र, पुष्टि, रूचि, कफ और पित्तवर्धक है। यह रक्तपित्त को कुपित करने वाली है, परन्तु बवासीर मे लाभकारी है। उर्द के बने व्यंजन के साथ दूध का प्रयोग अवश्य करना चाहिए। इससे पित्त प्रकोप शान्त होता है, साथ ही उर्द की मासवर्धक क्षमता भी बढ़ जाती है। मासवर्धक होने के कारण इसे मास की दाल भी कहते है। घुंवास के कुछ व्यजंन बनाने की विधियां नीचे दी जा रही है। कचौड़ी – कचौड़ी के लिए घुंवास को पानी मे शहद जैसा गाढ़ा घोल कर पाच मिनट रख दीजिए। तत्पश्चात उसे हल्का फेट लिजिए। यदि घोल गाढ़ा है और फेटने मे असुविधा हो रही हो…

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समूह द्वारा भरथना ( जिला इटावा उ0 प्र0 ) की सूखी और स्वच्छ दाल पिसवाकर बेसन तैयार कराया जाता है। हमारा बेसन छना हुआ, नमी रहित शुद्ध एंव स्वादिष्ट होता है। आयुर्वेद मे चने की दाल को शीतवीर्य, रूखी, लघु, बलकारक, रूचिकारक, रक्तपित्त, कफ,पित्त एंव ज्वरनाशक कहा गया है। यह हल्की वायुवर्धक है। मधुमेह मे चने की रोटी ( छिलका सहित ) बहुत लाभकारी होती है। अनाजो मे जितने अधिक चने के खा़द्य पदार्थ बनते है उतने किसी अन्य अनाज के नही बनते है। इसीलिए चने को अनाजो का राजा कहा गया है। कहावत है ‘ खाये चना रहे बना ’। चने की दाल, सब्जी, रोटी, पकौड़ी, हलुवा, कढ़ी, एंव अनेक प्रकार की मिठाईयाँ बनती है। कहां जाता है कि,जब औरंगजेब ने शाहंजहाँ को लालकिले मे कैद किया था तो उससे एक अनाज मांगने को कहा।तब शाहंजहाँ ने चना ही मांगा था। इस प्रकार चने का विशेष महत्व है।

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