हमारा शरीर पाँच ज्ञानेन्द्रियो, पाँच कर्मेन्द्रियो एंव मन से मिलकर बना है। आँख, दोनो कान, नासिका, जिह्वा एंव त्वचा ज्ञानेन्द्रियाँ है, जबकि दोनो हाथ, दोनो पैर, मुहँ, लिगं एंव गुदा कर्मेन्दियाँ है। मन इन सबका अधिपति है। ज्ञानेन्द्रियो का कार्य है, किसी विषय का ज्ञान प्राप्त करना। ज्ञानेन्द्रियाँ ज्ञान प्राप्त कर कर्मेन्द्रियो को कार्य करने का आदेश देती है, जिसका प्रभाव मन पर पड़ता है। आँख का कार्य है देखना। किसी सुन्दर वस्तु को देखने पर मन प्रसन्न हो जाता है। खाद्य पदार्थ देखने मे सुन्दर, आकर्षक एंव साफ सुथरा होना चाहिए। भोजन सुव्यवस्थित ढ़ग से थाली मे रखना चाहिए। भोजन शु़़द्ध, ताजा, स्वादिष्ट एंव स्वास्थ्यवर्धक बना होने पर भी प्लेट मे समूची रोटी के स्थान पर कई टुकड़ो मे रोटी इधर उधर पड़ी हो या रोटी का टुकड़ा दाल मे तैर रहा हो, प्लेट मे जगह- जगह दाल, सब्जी, दही आदि खाद्य पदार्थ फैला हो या डायनिग टेबुल गंदी…

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Pakshala

पाकशाला को सदैव स्वच्क्ष रखना चाहिए। इस सम्बंध में निम्नलिखित बाते ध्यान मे रखनी चाहिए– भोजनालय की छत और दीवाने प्लास्टर युक्त होनी चाहिए यह सफेद या हल्के रंगों से रंगे होने चाहिए। कक्ष की दीवालो पर कम से कम 5 फुट की ऊँचाई तक अच्छी क्वालिटी के टाइल या मार्बल लगे होने चाहिए। इसी प्रकार फर्श पर भी टाइल या पत्थर लगे होने चाहिए। फर्श आदि की साफ पानी से प्रतिदिन धुलाई होनी चाहिए। रसोई घर की खिडकी हवादार होनी चाहिए तथा खिड़की और रौशनदान पर महीन तार की जाली लगी होनी चाहिए। ताकि मक्खी, मच्छर या अन्य कीटाणु अन्दर न आ सके। इसी प्रकार दरवाजे भी जालीदार और स्प्रिंग दार होने चाहिए ताकि वे स्वयं बंद हो सके। रसोई घर मे एक छोटे पंखे की व्यवस्था होनी चाहिए। पंखा इस प्रकार होना चाहिए कि भोजन बनाने वाले को हवा लगे परन्तु गैस की आँच को हवा न लगे।…

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स्वस्थ्य शरीर मात्र कुछ लक्षणों से ही परिभाषित होता है प्रथम मल बंधा हुआ एवं साफ होना चाहिए, पेशाब भी खुल कर होना चहिए। द्वितीय भूख निश्चित समय पर खुलकर लगनी चाहिए। तृतीय मन प्रसन रहना चाहिए और चतुर्थ है शरीर आलस्यरहित रहना चाहिए। मन प्रसन रहना का अर्थ है कि आप तनावरहित एवं चिंतारहित हो साथ ही प्रत्येक कार्य में आपका मन लगता हो। मन प्रसन्न है इसका अर्थ यह है कि आप के हृदय में रक्त संचालन उचित ढ़ंग से हो रहा है। जब हृदय में उचित रक्त संचालन होता है तब शरीर के समस्त अंगो का पोषण होता है और शरीर में आलस्य नहीं रहता है। एक बात जान लीजिए रोगरहित शरीर में ही मन प्रसन्न रहता है।

संसार में जितने भी खाद्य पदार्थ हैं, उनमें रस, विपाक, वीर्य, गुण एवं शक्ति ये पॉच प्रभाव होते है। रस वह होता है, जिसे हम अपने जीभ से अनुभव करतें है, कि अमुक खाद्य मीठा हैं, खट्टा है या नमकीन आदि। विपाक क्या हैं़, जब हम कोई चीज खातें हैं तो उसके पेट में जाने पर उसमें अनेक प्रकार के पाचक रस मिलते है और एक नया रस बनता हैं, उसे विपाक कहतें हैं।ध्यान रहें मधुर और लवण रस प्रधान खाद्यों का जब विपाक बनता है तो वह मधुर ही रहता हैै। परन्तु खट्टे या अम्लरस प्रधान खाद्य पदार्थो का जब विपाक बनता हैं तब वह अम्ल ही रहता हैं। लेकिन कटु, तिक्त और कषाय ;कडु़वा, तीता और कसैलाद्ध इन तीनों रसों का विपाक कडु़वा ही रहता हैं।खाद्य पदार्थ पचने पर भी अपना प्रभाव दिखलाते है। खाद्य पच जाने पर जो प्रभाप दिखलाता हैं उसे वीर्य कहते है।गुण के अन्तर्गत…

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संसार में खाद्य पदार्थो की बहुत लम्बी श्रंृखला है। प्रश्न यह है कि क्या खाया जाये और क्या न खाया जाये। हर खाद्य हर एक के अनुकूल नहीं पड़ता है। यह उसकी प्रकृति पर निर्भर है। किसी को अंकुरित अनाज अनुकूल पड़ता है और किसी को प्रतिकूल। इसके लिए मनुष्य को स्यवं अपने भीतर झांक कर देखना चाहिए कि यदि आज मेरा शरीर भारी या रूग्ण है तो कब से भारी है और जब से भारी है उसके पहले हमने क्या खाया है, या कौन सा कार्य विशेष किया है। जैसे एसीडिटी के रोगी तला भुना अधिक खाते है या अधिक व्यायाम करते है तो उनके पेट मे जलन हाने लगती है या जी मचलाने लगता है। इसलिए मनुष्य को स्वयं देखना चाहिए या क्यों है। यह देखकर उसे उस भोज्य पदार्थ या कार्य विशेष से बचना चाहिए और उस रोग को प्राकृतिक उपायों से दूर करना चाहिए।मैने अधिकांश व्यक्तियों…

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व्यायाम के साथ-साथ विश्राम का पूरा ध्यान रखना चाहिए। नींद शरीर की एक आवश्यक खुराक है। जिसे पूर्ण होना अति आवश्यक है। यदि नींद पूरी नहीं होती है तो शरीर स्वस्थ नहीं रह सकता। नींद पूरी न होने से शरीर आलस्य से भरा रहता है। व्यायाम करने से शरीर के कोष टूटते है। उन टूटे हुये कोषों का पुर्निमाण निद्रा के द्वारा ही होता है। इस प्रकार नींद से शरीर का निर्माण होता है। बच्चा जब माँ के गर्भ मे रहता है तो वह चौबीस घण्टे सोता है क्योंकि उसके शरीर का निर्माण होता रहता है। पैदा होने पर भी लगभग एक वर्ष तक बच्चा अठ्ठारह से बीस घण्टे तक सोता है क्योकि उसके शरीर का लगातार संवर्धन होता रहता है। वृद्धो को नींद कम आती है क्योंकि उनके शरीर की निर्माण प्रक्रिया समाप्त हो जाती है। इसलिए नींद का पूरा ध्यान रखना चाहिए रात्रि को नौ-दस बजे तक अवश्य…

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व्यायाम के साथ-साथ आहार पर भी ध्यान देना चाहिए आहार का जीवन मे बहुत महत्ंव है। आर्युवेद में कहा गया है कि – ‘‘वयोबल शरीराणि देश कालाशनानिच।समक्ष्यि कुर्याद व्यायाममन्यथा रोगमाप्नुयात्।।‘‘ अर्थात्- मनुष्य को अपनी आयु बल, शारीरिक स्थित, देश काल तथा अपना भोजन आदि देखकर ही व्यायाम करना चाहिए। यदि कोई इन बातों को ध्यान में नही रखेगा तो वह रोग से आकारान्त होगा। इसलिए व्यक्ति को उपयुक्त बातों को ध्यान में रखते हुए टहलना और व्यायाम आदि करना चाहिए। आहार सदैव शुद्ध, सुपाच्य, संतुलित एवं ताजा होना चाहिए। जब तक हमारा आहार और विहार जिसमें हमारा व्यायाम और रहने का ढ़ग आता है दोनो उचित नहीं होगे तब तक हमें पूर्ण स्वास्थ लाभ नहीं मिलेगा। जहाँ तक आहार का समबन्ध है, हम यूरोपवासियों की तुलना में अधिक प्राकृतिक भोजन लेते है परन्तु फिर भी हम रोगी और कम उम्र वाले होते है। वे हमारी तुलना में अधिक मात्रा में…

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योगा भारत की अति प्राचीन एवं सर्वोत्तम व्यायाम प्रणाली है। यह इतनी शक्तिशाली और व्यवहारिक है कि शरीर के समस्त रोगों को ठीक करने में समर्थ है। यह प्राकृतिक चिकित्सा का एक अंग है। इससे शरीर दीर्घायु होता है। भिन्न-भिन्न रोगो में अलग-अलग प्रकार के योगा होते है जैसे यकृत, वृक्क आदि के लिये भुजंगासन, शलभासन एवं मांसपेशियों के लिए धनुरासन आदि होते है।यीगा के विषय में एक महत्वपूर्ण तत्थ है जिसे मै आपको बता रहा हूँ। आधुनिक युग के लोग उसे नही जानते है और न ही पुराने लोग उसकी जानकारी देते है, वह है श्वांस का लेना और श्वांस का छोड़ना। योगा वास्तव मे श्वांस विज्ञान का खेल है। श्वास हमेशा पेट से ली जाती है और पेट से छोड़ी जाती है। जैसे गोद का बच्चा जब सोता है तो आप देखते होगे कि उसका पेट उठता बैठता रहता है। जब उसका पेट ऊपर को उठता है तब…

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टहलना भी एक व्यायाम है। यह ऐरोबिक व्यायाम के अन्तर्गत आता है। इससे एल. डी. एल कोलेस्ट्रोल एंव ट्रिग्लिसराइड्स का स्तर धटता है। साथ ही एच. डी. एल कोलेस्ट्रोल का स्तर बढ़ता है, जो कि एक अच्छा होता है कोलेस्ट्रोल । टहलने से होने वाले लाभ से भारतीय प्राचीन काल से परिचित थे। इसका वर्णन हमे चीनी यात्री इत्सिंग (672-688)ई0 के वृत्तांत में मिलता है। वह लिखता है कि ‘‘भारतीय प्रातः काल और सायंकाल भ्रमण के लिये जाया करते थे। भ्रमण करने से रोग दूर होते है और भोजन पचने मे सहायता मिलती है।‘‘ सूर्योदय से कम से कम एक घण्टा पूर्व उठकर शौचादि, क्रिया से निवृत्त होकर टहलने के लिए निकलना चाहिए। खूब तेज टहलना चाहिए। टहलते समय हाथ पूरा आगे पीछे चलना चाहिए। जैसे पुलिस या सैनिक परेड करते है ठीक उसी प्रकार हाथ आगे पीछे करते हुए तेजी से टहलना चाहिए। श्वंास मुह बन्द करके सदैव नाक…

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