श्यामा जीरा

श्यामा जीरा

यह अवेलीफेरी परिवार का एक अर्द्धवार्षिक पौधा है। जिसका वानस्पतिक नाम कैरन कार्बाेलिन है। यह मूल रूप से उत्तरी और मध्य यूरोप का पौधा है। अमेरिका मे भी इसकी खेती होती है। भारत मे यह हिमालय के उत्तरी क्षेत्र मे जंगली पादप के रूप मे उगता है। मैदानी क्षेत्रो मे जाड़े के दिनो मे इसकी कृषि होती है। यह मुश्किल से 5 – 6 फुट उचा पादप है।
विभिन्न नाम – संस्कृतः सुषवी, उपकुचिका। बंाग्लाः जीरा, कन्नड़ः शिमे जीरिगे, मराठीः विलायती जीरा, कटुजीरा। तेलुगुः सिमा जीरकै, मलयालमः शिमा जीरकम। पंजाबीः स्याह जीरा। अँग्रेजी -(Black Cumin.)

रासायनिक संघटन –
जलांश: 4.4%; प्रोटीन: 7.5%; वसा: 8.2%; कच्चा रेशा: 20.00%य कार्बोहाइड्रेट: 60.1%; कुल भस्म: 3.1%; कैल्शियम 1.0%; लौह: 0.09%; फास्फोरस:0.11%; सोडियम: 0.02%; पोटेशियम: 1. 9%; ; विटामिन ए:580, कैलोरी/ 100ग्रा0: 460।

गुर्ण धर्म एंव उपयोग –
आयुर्वेद के मतानुसार कालाजीरा क्षुधावर्धक, पाचक, रक्तशोधक, वातनाशक, कृमि एंव चर्मरोग नाशक है। यह कब्ज, मूत्ररोग एंव गर्भाशय रोग मे लाभकारी है। यह गर्म एंव स्वाद मे कटु एंव तीखा है। मन एंव मस्तिष्क को उत्तेजित करता है एंव रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाता है। कालाजीरा कानदर्द, दातदर्द, कैसर, शुगर, रक्तचाप एंव जिगर रोग मे लाभकारी है। । Anti oxidant होने के कारण यह कैसर रोधी है, एंव Anti Bactiral भी है। यह Amun system को बढ़ाता है।

वजन घटाने मे मेथी और अजवाइन के साथ श्यामा जीरे का प्रयोग किया जाता है। मोटे लोग प्रायः कफ प्रकृति के होते है। और मेथी एंव अजवाइन कफ वात नाशक होते है। वातनाशक गुण होने के कारण काला जीरा को भी इसके साथ अल्प मात्रा मे मिला लिया जाता है। इस योग मे मेथी दाना का आधा भाग अजवाइन और अजवाइन का आधा भाग श्यामाजीरा लेते है। तीनो को मंद आच पर अलग- अलग भून लेेते है। अलग- अलग इसलिए भूनते है कि तीनो की आच अलग- अलग होती है। शयामाजीरा शीघ्र ही भुन जाता है। जबकि अजवाइन कुछ अधिक आच लेती है। और मेथी उन दोनो से भी अधिक समय भुनने मे लेती है। यदि तीनो एक साथ भूनते है तो मेथी भुनने तक सहजीरा और अजवाइन जल कर राख हो जायेगे। इसीलिए तीनो मसालो को अलग- अलग भूना जाता है। भुनार्इ्र भी हल्की होनी चाहिए। अब तीनो औषधियो को महीन कूट पीस कर एक शीशी मे भर कर सुरक्षित रख ले और एक एक चम्मच प्रातः सायः गुनगुने जल के साथ सेवन करे। यह योग वनज घटाने के साथ साथ पाचन, गठिया, कब्ज, पेट के रोग, कृमि और खांसी मे भी लाभ करता हैै। कफ एंव वात प्रकृति के वालो के लिए यह एक रामबाण औषधि है।

पेट दर्द मे भुने हुए श्यामाजीरा का चूर्ण सैन्धव लवण के साथ मिलाकर गुनगुने जल के साथ देने पर शीघ्र लाभ होता है। इसमे आप भुनी हुई शुद्ध हींग भी मिला सकते है। अनिद्रा मे श्यामाजीरा का चूर्ण 05 ग्राम शहद मे मिलाकर रात्रि को शयन के पूर्व लेने से लाभ होता है। प्रसवोपरान्त तीन माह तक लगातार एक छोटा चम्मच श्यामाजीरा का चूर्ण गुड़ के साथ लेने पर प्रसुता के सौदर्य मे वृद्धि होती है। स्तन पुष्ट होते है एंव गर्भाशय संकुचित होता है। स्तनो के दुग्धवृद्धि हेतु कालाजीरा और ताल मिश्री का चूर्ण समभाग प्रातः सायः जल के साथ सेवन करने से लाभ होता है।

किसी जहरीले कीड़े के काटने पर काटे हुए स्थान पर कालाजीरा को ज लमे पीस कर उस पर लेप लगाने तथा 05 ग्राम सहजीरा पानी मे पीस कर पिलाने से लाभ होता है।

इसके अतिरिक्त इसे अचार, सांस, बेकरी, शराब और मसाले मे भी प्रयोग करते है। सुवास के लिए इसके तेल को साबुन बनाने मे प्रयोग किया जाता है।

हमारे समूह द्वारा अच्छे साफ काले जीरे का विक्रय किया जाता है। इसके अतिरिक्त यह हमारे गरम मसाला, सब्जी मसाला, मीट मसाला, रायता मसाला एंव चाट मसाला मे प्रयुक्त होता है।

पत्रज – यह एक उष्णकटिबन्धीय वृक्ष है। जिसका वानस्पतिक नाम सिनेमोमम तमाला है। यह लरिसी परिवार का सदस्य है, इसके वृक्ष 20 से 30 फुट तक उचे होते है। और तने 5 फुट तक मोटे होते है। ये हिमालय पर 8000 फुट की उचाई तक पाये जाते है। खांसी जयतिया की पहाड़ियो और पूर्वी बंगाल मे यह वृक्ष पाया जाता है। इसके हर अंग से सुगंध आती है। आसाम का तेजपात विश्वप्रसिद्ध है।

विभिन्न नाम – संस्कृत: तमालक, पत्रज। बंगाली, पंजाबी, उर्दूः तेजपात। गुजराती तमालपत्र। तमिल तलिशपत्तिरी। तेलुगु: तालिसपत्री।

गुण धर्म एंव उपयोग –
आयुर्वेद के मतानुसार पत्रज त्रिदोषनाशक पाचक, उष्ण, सुंगधित, सिरदर्द, हड्डियो का दर्द, सर्दी जुकाम, मधुमेह, बांझपन एंव पित्तरोग मे लाभकारी है। यह ह्रदय, दात, नेत्र, त्वचा एंव बालो के लिए भी लाभकारी है। तेजपात गुर्दे के संक्रमण को दूर करता है साथ ही गुर्दे की पथरी को भी गलाता है। यह स्मरण शक्तिवर्धक, स्तनवर्धक और तनाव को दूर करने मे भी सहायक होता है।

तेजपात मे ।दजप वगपकंदज ंदक ।दजप पदसिंउमदजतल गुण होने के कारण यह रोगप्रतिराधक शक्ति को बढ़ाता है। यह रक्त मे ग्लूकोज एंव कोलेस्ट्राल के स्तर को कम करता है। इस प्रकार यह मधुमेह मे भी लाभकारी है। मधुमेह मे तेजपत्ते के चूर्ण को एक एक चम्मच प्रातः सायः ताजे जल के साथ तीस दिन तक खाने से लाभ होता है।

गुर्दे के संक्रमण एंव पथरी मे तेजपत्ते को पानी मे उबालकर छानकर उसका पानी पीना चाहिए। इस उबले जल से आप अपना चेहरा भी धुल सकते है। इससे चेहरे के कील मुहासो को दूर करने मे मदद मिलेगी तथा त्वचा पर निखार भी आयेगा।

खांसी जुकाम मे तेजपत्ता और पिप्पली चूर्ण समभाग लेकर शहद के साथ लेने से लाभ होता है। अदरक के रस के साथ इसके चूर्ण को लेने से दमे मे लाभ होता है। वायु विकार या अजीर्ण मे इसका काढ़ा पिलाया जाता है। यह मासिक धर्म को नियमित करता है। एंव प्रसवोपरान्त प्रसूता को इसका काढ़ा पिलाने से अधिक रक्तस्राव एंव सेप्टिक होने का खतरा कम हो जाता है।

छातो का पीलापन दूर करने के लिए इसके पत्ते के चूर्ण का मंजन करना चाहिए। इसके अतिरिक्त यह अनेक प्रकार के औषधियो एंव मसालो मे प्रयुक्त होता है। काशमीर मे इसके ताजे पत्तो को पान के स्थान पर खाते है। रंगाई के काम मे इसे हर्रे के साथ शोधन के लिए प्रयुक्त किया जाता है।
हमारे समूह द्वारा साफ समूचे पत्ते विक्रय किये जाते है।

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