राई

राई

यह धान्य वर्ग और राजिकादि कुल ( ब्तनमपमितंब द्ध का पौधा है। यह रबी के फसल के समय बोई जाती है और ग्रीष्मकाल मे पक जाती है। इसका पादप दो से चार फुट तक उँचा होता है और इसके पत्ते मूली के पत्ते के समान होते है। इसमे पीले रंग के फूल आते है और फली के रूप मे फल लगते है, जिसमे लाल महीन दाने निकलते है। यह भारत, पूर्वी एशिया, अफ्रीका, दक्षिणी अमेरिका मे बहुतायत से पाया जाता है।

विभिन्न नाम- संस्कृत- राजिका, राजि, आसुरी, तीक्ष्णगन्धा; हिन्दी एंव गुजराती- राई; कशमीर- आसुर। तेलगु- अवालु ; मलयालम- कडुक; फारसी- सरफफ; अंग्रेजी- प्दकपंद डनेजमतक

रासायनिक संगठन- जलांष: 6.40ः, वसाः 35.00: ,कच्चारेषाः 8.00ः, नाइट्रोजनीय पदार्थः 25% , भस्म: 5.2% ,नाइट्रोजनमुक्तसार 22.40% होता है।

गुण धर्म एंव उपयोग – यह रस मे कटु, तिक्त, विपाक कटु, वीर्य मे उष्ण, गुण तीक्ष्ण एंव दाहकर है। राई पाचक, उत्तेजक, चरपरी कड़ुवी, गर्म, दाहजनक, पित्तकारक एंव वातप्लीहा और शूलनाशक है। यह ने़त्र और वृक्को को प्रदूषित करने वाली तथा कफ, गुल्म, कण्डू और कृमि रोग को नष्ट करने वाली है।

इसका उपयोग अनेक प्रकार की औषधियो एंव खाद्य पदार्थो मे होता है। अपच एंव उदरशूल मे राई का चूर्ण एक से दो ग्राम, थोड़ी श्क्कर के साथ मिलाकर जल के साथ देने से शीघ्र लाभ होता है। कफ अधिक गाढ़ा हो जाने से निकलने से कष्ट होने पर राई 4 ग्रा0, सेघा नमक 2 ग्रा0 और मिश्री 16 ग्रा0 मिलाकर प्रातः- सायः देने से कफ पतला होकर सरलतापूर्वक बाहर निकलता है।
दाँत के दर्द मे राई को गर्म जल मे उबालकर कुल्ला करने से वेदना का दमन होता है।
त्वचा के भीतर कांटा, कँाच या धातु कण गढ़ जाने पर और दृष्टिगत न होने के कारण सरलता से ना निकल रहा हो तो उस पर राई चूर्ण को घी और शहद मे फेट कर लेप कर देने से विजातीय द्रव्य उपर आ जाता है और स्पष्ट द्रष्टिगोचर हो जाता है और जिससे वह सरलता से बाहर निकल जाता है।
शरीर मे किसी स्थान पर गाठ बढ़ने पर उस पर राई और कालीमिर्च का चूर्ण घी मे मिलाकर लेप करने से गाठवृ़िद्व रूक जाती है।

नेत्र के पलक पर फूड़िया हो जाने पर राई के चूर्ण को घी मे मिलाकर लेप करने से शीघ्र लाभ होता है। इसके अतिरिक्त राई का उपयोग भोजन मे मसाले के रूप मे, काँजी एंव अचार बनाने मे तथा शराब मे खमीर बनाये रखने के लिए होत है। इसका तेल भी निकाला जाता है। इसका तेल त्वचा के मुलायम रखता है, इसलिए यूरोपवासी इसे साबुन बनाने मे प्रयुक्त करते है।
हमारे समूह द्वारा धुली हुई साफ राई का विक्रय होता है। एंव हमारे लाल भरवा मिर्च तथा हरी मिर्च के अचार मे प्रयुक्त होता है।

अहितकर- पित्त प्रधान व्यक्तियो को।

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