पोस्ता

पोस्ता

खसखस से मानव लगभग 3000 वर्षो से परिचित है।इसकी कृषि मध्य यूरोपीय देश, ऑस्ट्रेलिया, तुर्की और भारत मे होती है। भारत मे इसकी खेती पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान एंव मध्यप्रदेश मे होती है। यह तिलहन जाति का है। इसके बीजो को पोस्ता या खसखस कहते हैं। पोस्ता दो प्रकार का होता है। पहला नीला खसखस ​​और दूसरा श्वेत या सफेद खसखस। नीला खसखस ​​यूरोपीय देशो मे होता है जो बेकरी और मिठाई मे इस्तेमाल होता है। जबकि सफेद पोस्ता एशियाई देशो और भारत मे पैदा होता है। इसका प्रयोग औषधियो एंव मसालो मे होता है। कच्चे पोस्ते मे मारफीन नामक तत्व पाया जाता है,जो दर्द निवारक का कार्य करता है। लेकिन इसका अधिक सेवन करने से यह नशे की आदत डाल देता है। जबकि पके हुए बीजो मे कोई नशा नहीं होता है।

विभिन्न नाम – संस्कृत- खस। बांग्ला- कसकस, पोस्टो, गसागसालू। गुजराती- खशखश। मलयालम- कशकश। तमिल- गसगस। उर्दू- खशखश सफेद। तेलगु- कसकस, गसलु।

रासायनिक संघटन –
जलांश: 4.9%; प्रोटीन: 23%; कच्चा रेशा: 5ःय कुल भस्म: 5.8%; कैल्शियम 1.03%; लौह: 9.9%; फास्फोरस:0.79%।

गुण धर्म एंव उपयोग –
आयुर्वेद के मतानुसार खसखस शामक, शीतल, निद्राकारक , कब्जनिवारक, ह्रदय, चर्मरोग, मूत्ररोग, लैगिंग निर्बलता एंव गुर्दे की पथरी मे लाभकारी है। यह हड्डी को मजबूत करता है एव रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाता है। खसखस मे कैल्शियम, मैग्नीशियम, पोटैशियम, आयरन, जिंक एव फैटी एसिड पर्याप्त रूप में मिलता है। यह फाईबर युक्त भी होता है। एंटी ऑक्सीडेंट होने के कारण या कैंसर रोधी भी।कैल्शियम युक्त होने के कारण कारण को मजबूत करता है और हाथ पैर में होने वाले दर्द में लाभकारी है।जिंक युक्त होने के कारण यह इम्यून सिस्टम को मजबूत करता है। दूध के समान इसमें भी ट्रिपटोफैन नामक हार्मोन पाया जाता है,जो निद्राकारक होता है। खसखस में 50% तक तेल होता है।

मुंह या पेट के छाले में पोस्ता ताल मिश्री के साथ खाने से लाभ होता है। ग्रीष्मकाल में पोस्तादाना, हरी महीन ,सौफ़,खरबूजे का बीज, गुलाब का फूल, गोंद कतीरा, थोड़ी कालीमिर्च और छोटी इलायची के बीज सिल पर पीसकर ताल मिश्री के साथ मिलाकर पीने से शीतलता मिलती है। इसके सेवन से शरीर की जलन दूर होती है और लू नहीं लगती है।परंतु शरबत में बर्फ या फ्रिज का जल सेवन नहीं करना चाहिए। मिट्टी के घड़े के जल का ही प्रयोग करना चाहिए। जल के स्थान पर आप गाय का ठंडा दूध भी प्रयोग कर सकते है। ग्रीष्मऋतु में चाय के स्थान पर इसका सेवन उत्तम होता है।

लेंगिक दुर्बलता दूर करने के लिए जल में भीगे हुए पोस्ते को सिल पर महीन पीसकर गाय या बकरी के दूध में मिलाकर पीने से लाभ होता है।इससे स्वास्थ्य और सौंदर्य मे वृद्धि होती है।इसमें आप अन्य मेवे भी मिल सकते हैं। परंतुध्यान रहे कि दूध ताजा और एक उबाल का होना चाहिए साथ ही चीनी के स्थान पर ताल मिश्री का प्रयोग करना चाहिए। यह निद्राजनक भी होता है और थकान दूर करनेे वाला होता है।

त्वचा के संक्रमण में पोस्ते के दानो को नींबू के रस में पीसकर संक्रमित स्थान पर लगाते हैं।

खसख का प्रयोग अनेक प्रकार की औषधियों,मसाले, शीतल पेय, खीर, बेकरी एवं मिठाइयों में होता है। समूह द्वारा स्वच्छ किया हुआ पोस्तादाना विक्रय होता है।

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