घुंवास

घुंवास


घुंवास उर्द की घोई ( छिलका रहित दाल ) का दरबरा आटा होता है। इसकी कचौड़ी, फरा, दहीबड़ा और बरी बनती है। चने की दाल के समान इसके बने व्यंजन भी बहुत स्वादिष्ट होते है।

आयुर्वेद के मतानुसार उर्द शीतवीर्य, स्निग्ध और भारी है। यह बल, शुक्र, पुष्टि, रूचि, कफ और पित्तवर्धक है। यह रक्तपित्त को कुपित करने वाली है, परन्तु बवासीर मे लाभकारी है। उर्द के बने व्यंजन के साथ दूध का प्रयोग अवश्य करना चाहिए। इससे पित्त प्रकोप शान्त होता है, साथ ही उर्द की मासवर्धक क्षमता भी बढ़ जाती है। मासवर्धक होने के कारण इसे मास की दाल भी कहते है। घुंवास के कुछ व्यजंन बनाने की विधियां नीचे दी जा रही है।

कचौड़ी –

कचौड़ी के लिए घुंवास को पानी मे शहद जैसा गाढ़ा घोल कर पाच मिनट रख दीजिए। तत्पश्चात उसे हल्का फेट लिजिए। यदि घोल गाढ़ा है और फेटने मे असुविधा हो रही हो तो थोड़ा पानी मिला लीजिए। अब इसे थोड़ा लेकर पानी मे डालिए। पानी मे डालमे पर यदि वह तैरने लगे तो समझिये वह फेट गया है। अब इसमे तेल, गर्म मसाला, सौफ, हींग, कुटी लाल मिर्च आदि डालकर धीमी आच पर हल्का गुलाबी होने तक भूनिए। भुन जाने पर उसे उतार लीजिए और उसमे अमचुर मिला दीजिए। कुछ लोग इस भुनी हुई दाल मे खाने वाला सोडा भी मिलाते है जिससे कचौड़ी अधिक फूलती है। परन्तु सोडा रहित कचौड़ी भी फूलती है और खाने मे अधिक स्वादिष्ट भी होती है साथ ही पेट के लिए हानिकारक भी नही होती। इसलिए सोडे के प्रयोग से बचना चाहिए।

अब मैदे मे घी ( मोयन ) और नमक मिलाकर हल्का कड़ा साने ( कचौड़ी का आटा अधिक कड़ा नही रहता है ) और छोटी – छोटी लोइयां बनाकर उसमे अंगूठे से गड्ढा बनाकर भुनी हुई दाल उसमे भरे। अब लोइ का मंहं बंदकर हाथ से पूड़ी जैसा बनाकर बीच मे अगूठे से हल्का दबाये और धीमी आच पर तले। हल्का लाल हो जाने पर कढाई से बाहर निकाले। कचौड़ी तैयार है। केवल आपके खाने की देर है।

कचौड़ी बनाने की एक दूसरी विधि भी है। जो उपर्युक्त विधि की तुलना मे काफी सरल है। इसके लिए धुवासं को पहले जैसा ही सान फेट कर तैयार कर लीजिए और उसमे गर्म मसाला, सौफ, लाल मिर्च, हींग, नमक, हरी धनिया और अदरक आदि मिलाकर मैदे या आटे के साथ सान लीजिए। इसे पूडी़ जैसा बेलकर धीमी आंच पर घी या तेल मे तल लीजिए। यह कचौड़ी भी अच्छी बनती है। इसमे समय, श्रम और ईधन की बचत होती है।

फरा –

फरा के लिए भी धुवासं को कचौड़ी के धुवासं के समान तैयार कर लेते है और उसमे बेसन, गरम मसाला, मिर्चा, हींग और नमक के साथ मिलाकर रोटी के आटे के समान सान लेते है। अब इसे चावल के आटे की बेली हुई लोइयो मे भर कर भाप मे पकाते है। लोइयो मे सब्जी भर का भी फरा बनता है। मीठा फरा खोया, मेवा और चीनीे के मिश्रण के भरावन के साथ बनता है। परन्तु इसका भरावन मोमोज की तरह चारो ओर से चावल की लोई से बंद रहता है ताकि भाप पाकर खेया टिघल कर चूने ना पाये। इसमे सुवास के लिए छोटी इलायची के बीज या जायफल का पाउडर भी मिलाते है।

दही बड़ा –

दही बड़े के लिए भी धुवासं को कचौड़ी के धुवासं के समान सान फेट कर तैयार कर लेते है, और छोटी- छोटी लोइया बनाकर उसमे बारीक कटी अदरक, हरी धनिया की पत्ती, खड़ी चिंरौजी और किशमिश थोड़ा- थोड़ा भर कर ( कचौड़ी के समान ) बहुत ही धीमी आँच पर तलते है। इसे भी हल्का गुलाबी होने तक तलते है। तत्पश्चात इसे तेल से निकालकर थोड़ी देर पानी मे डालते है। लगभग दस मिनट पश्चात इसे पानी से निकालकर हल्के हाथ से दबाकर पानी निकाल देते है और गाढ़ी मथी हुई दही मे डाल देते है। सर्व करते समय प्लेट मे दहीबड़ा निकालकर उसके उपर दही, रायता मसाला, इमली की मीठी चटनी और नमक डालकर पुदीने की पत्ती से सजाकर प्रस्तुत करते है। यह दही बड़ा बहुत ही स्वादिष्ट होता है। यदि दही पतली हो तो तले हुए बरे को पानी मे ना डालकर सीधे दही मे मिलाते है। मीठा दही बड़ा बनाने के लिए दही मे थोडी़ शक्कर मिला देते है।

निषेध-पित्त प्रधान व्यक्तियों के लिए।

252 comments

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