यह एक परजीवी झाड़ी है जो जावा सुमात्रा, मलाया एंव भारत के तटीय वनो मे पायी जाती है। इसमे श्वेत पुष्प होते है और बीज कालीमिर्च के समान श्यामवर्ण के गोल पतली दण्डीदार होते है। यही बीज कबाबचीनी कहलाता है।
विभिन्न नाम – सुगंधि मरिचम, हिन्दी- शीतल चीनी, उर्दू- कबाब चीनी।
गुर्ण धर्म एंव उपयोग – आयुर्वेद के मतानुसार शीतलचीनी स्वाद मे तीखी और चरपरी है। यह गर्म, कामोत्तेजक, कफवातनाशक, मू़त्रकारक, वीर्यदोष नाशक, मन एंव मष्तिक को प्रसन्न करने वाली, ह्रदय, नेत्र, सिरदर्द, श्वेतप्रदर, जिगर, तीली, उनमाद एंव मोतियाबिंद रोग मे लाभकारी है। यह पेट के रोग, मूत्राशय एंव गर्भाशय के रोग मे भी लाभकारी है। इसका तेल लिग की नसो की दुर्बलता को दूर करने वाला होता है। यह एंव गुणो से युक्त होता है।
सूखी खांसी मे इसके चूर्ण के साथ लेते है। गले के दर्द एंव सूजन मे इसे सेधा नमक के साथ साबुत चूसने से भी लाभ होता है साथ ही इसके तेल को ,खौलते पानी मे डालकर इसका भाग चेहरे पर लेने से अधिक लाभ होता है। भाप लेते समय सर को किसी मोटी तौलिया या कपड़े से पानी के बर्तन तक भलीभांति ढ़क लेना चाहिए ताकि भाप बाहर ना जाने पाये। यह प्रयोग फेफड़े की सूजन, दमा, सांस लेने मे तकलीफ आदि मे भी लाभ करता है।
यौन रोगो एंव उससे संबधित दुर्बलताओ मे भी इसका प्रयोग किया जाता है। चूकि यह गर्म होता है इसलिए इसके साथ ठण्डे पदार्थ जैसे तालमिश्री, गोदकतीरा, बंसलोचन, छोटी इलाइची के बीज आदि मिलाकर सेवन किया जाता है। इससे अपूर्व लाभ होता है।
हमारे समूह द्वारा शुद्ध साबूत कबावचीनी का विक्रय किया जाता है एंव अनेक पिसे मसालो मे भी यह प्रयुक्त होता है।
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